गुरुवार, 10 जनवरी 2013

सत्य या राष्ट्र : क्या महत्वपूर्ण है.?

 दोनों देशों(भारत/पाक) के आरोप-प्रत्यारोपों के बीच कक्षा में चर्चा
6 जनबरी को पाकिस्तान से लगती सीमा (LoC) पर गोलाबारी में एक पाक सैनिक की मौत हुयी और एक घायल हुआ। पाकिस्तानी सेना ने आरोप लगाया कि भारतीय सेना ने हाजी पीर सेक्टर में उसकी सीमा में घुस कर हमला कर एक सैनिक को मार डाला और एक अन्य को घायल कर दिया। लेकिन भारतीय सेना का कहना  कि पकिस्तान का ये आरोप उसी दिन तड़के हुयी गोलाबारी पर पर्दा डालने की कोशिश है जिसमें कोई हताहत नहीं हुआ था लेकिन सीमा से लगने वाले भारतीय गांव में कुछ नुक्सान हुआ था।

8 जनबरी को जम्मू कश्मीर के पुंछ इलाके में पाकिस्तानी सैनिकों ने भारतीय सीमा में अंदर आकर हमला किया इस हमले में दो सैनिक शहीद हुए, जिसमें एक सैनिक की सरविहीन शव मिला है।

इन दोनों दिनों की घटनाओं की जो भी जानकारी मिली है वो सेना के प्रवक्ताओं से ही मिली है। और दोनों ही देशों ने एक-दूसरे के आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया।
 इन घटनाओं को लेकर सीमा के दोनों तरफ के लोगों में पर्याप्त रोष देखा जा सकता है। भारत में खास कर हिंदी मीडिया और सोशल मीडिया में पकिस्तान को "सबक सिखाने" के भी सुझाव दिए जा रहे है। (पाक में भी ऐसा ही माहौल है)
अंग्रेजी दैनिक 'द हिंदू' ने इससे सम्बंधित एक रिपोर्ट अपने मुख्य पृष्ठ पर छापी है जिसमें बताया गया है कि सितम्बर माह में एक महिला द्वारा नियंत्रण रेखा पार किये जाने के बाद भारत ने सुरक्षा कड़ी करने के लिए चरौंदा गांव में बंकर बनाने शुरू कर दिए जो पकिस्तान के अनुसार 2003 में हुए समझौते का उल्लंघन है, और यही तनाव का कारण बने।
टाइम्स ऑफ़ इंडिया के अनुसार ये हमला पाक सेना के स्पेशल सर्विसेस ग्रुप (एसएसजी) द्वारा किया गया है, एसएसजी द्वारा ऐसा ही हमला 2000 में इलियास कश्मीरी के नेतृत्व में हुआ था।  दैनिक भास्कर भी कुछ इसी तरफ इशारा करता है।

आज सुबह हमारी कक्षा में इसी खबर को लेकर (आनंद) सर ने इसे एक तरह बिना घटना के कारणों की तह में जाए, पूर्वागृह से ग्रसित, भावना में बहकर भड़काने वाली रिपोर्टिंग करार दिया। और यही पूछा की एक पत्रकार या किसी भी के लिए राष्ट्र महत्वपूर्ण है या घटना की सच्चाई जानना.?
1-अमित- हम चाहे सत्य की बात करें या राष्ट्र की, दोनों ही मामलों में पाकिस्तान ही कटघरे में होगा।
              - बात जब भारत और सत्य को चुनने की हो तो मैं भारत को ही चुनूंगा क्योकि सत्य तो भारत के साथ अनिवार्य रूप से जुड़ा (एसोसिएट) है, भारत सत्य का पर्याय है।
2-वेद-राष्ट्रवाद को महत्वपूर्ण मानने का परिणाम अल्पकालिक के लिए तो बेहतर हो सकता है लेकिन दीर्घकाल के लिए सत्य ही बेहतर विकल्प है।
3-श्रीश-संदेह होने पर राष्ट्र को ही प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
4-आदर्श-नैतिकता के लिए या राष्ट्रहित के लिए सच छुपाया भी जा सकता है। जैसे बलात्कार के बाद पीड़िता का नाम न बताना या किसी जातीय या सांप्रदायिक हिंसा की रिपोर्टिंग में किसी का नाम नहीं लिया जाता।
5-विनम्रता-सत्य परिस्थिति के सापेक्ष है। यह देश-काल के अनुसार अलग-अलग हो सकता है।
6-दिनेश-सच भी कभी-कभी राष्ट्र हित में लाया जा सकता है।
7-अनुग्रह-मीडिया राष्ट्रवाद से प्रेरित है। जब एक भारतीय सैनिक पाकिस्तानी को मारता है तब खबर नहीं आती लेकिन जब कोई भारतीय मारा जाता है तब ज्यादा हो हल्ला होता है।
कक्षा में सभी दुविधा में थे लेकिन अधिकतर ने राष्ट्र को महत्वपूर्ण माना।

आनंद सर-वियतनाम युद्ध में अमेरिकी सरकार और मीडिया ने युद्ध की झूठी तस्वीर जनता को दिखाई परिणामतः अमेरिकी सैनिक युद्ध में उलझे रहे और इसमें अमेरिका को क्षति उठानी पड़ी।(यहाँ झूठ की कीमत स्वयं अमेरिका को चुकानी पड़ी)
               -इराक़ युद्ध में भी राष्ट्रहित के नाम पर अमेरिकी मीडिया ने युद्ध के पक्ष में जनमत बनाया और अपनी सरकार के कदम को सही ठहराया। (यहाँ झूठ की कीमत इराक़ी जनता ने चुकाई)

     इन सब तर्कों के बाद भी हमें इतिहास में भारत-पाक के कुछ युद्धों की ओर देखना चाहिए- स्वतंत्रता के बाद कश्मीर में आक्रमण, 1965, 1971 और कारगिल सभी लड़ाइयों को शुरू करने का श्रेय पकिस्तान को ही है। इसके अलावा चीन के साथ हुआ युद्ध भी चीन ने ही आरंभ किया था। इन घटनाओं के माध्यम इतना ही कहा जा सकता कि भले ही मीडिया पकिस्तान से हुए किसी भी आक्रमण को बाधा-चढ़ा कर दिखाए लेकिन अंततः भारत को दोषी नहीं ठहरता, और सत्य की भी पुष्टी हो जाती है।
     सामरिक मामलों के विशेषज्ञ मरूफ रजा के अनुसार 60 सालों से पाकिस्तानी सरकार और सेना में भारत के प्रति जो कटुता की भावना पैदा की है, उसे कुछेक क़दमों से कम नहीं किया जा सकता। कमोडोर उदयभास्कर इसके कारण पाक में आने वाले चुनावों में देखते हैं। जबकि बी. रमन के अनुसार दोनों देशों के बीच भले ही संबंध सुधरने के प्रयास चल्रा रहें हो लेकिन इसके समांतर ही भारत को अपनी सीमाओं को अभेद बनाकर पकिस्तान को ये एहसास कराना चाहिए कि ऐसी घटनाओं के गंभीर परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं।

अगर आपके भी सत्य और राष्ट्र की महत्ता से सम्बंधित कुछ तर्क हो तो स्वागत है...

1 टिप्पणी:

  1. अमित जी आप ने सार्थक बात कही है|
    राष्ट्र से बड़ा कुछ भी नहीं होता है और जहाँ तक सवाल पाकिस्तान का है तो मुझे नहीं लगता कि उस पर विश्वास करने योग्य अब कुछ भी बचा है |
    हमारे सैनिको का बलिदान चीख चीख कर पाकिस्तानी सैनिको और उनके द्वारा समर्थित आतंकवादियों के कारस्तानियों की हकीकत बयां कर रहा है |
    सत्य का जहाँ तक सवाल है तो पाकिस्तानी सेना और जिहादी संगठन एक दुसरे के प्रतिबिम्ब है इस लिए दोनों पर समान रूप से आरोप लगाये जा सकते है |
    महत्वपूर्ण बात यह है कि अगर यह घटना किसी जेहादी संघठन ने अंजाम दी है तो वो पाक सीमा की तरफ से आया कैसे ?

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