प्राकृतिक संसाधनों का कुछ मुट्ठीभर लोगों द्वारा, कुछ मुट्ठीभर लोगों की 'अय्याशी' (तथाकथित 'समावेशी' विकास) के लिए दोहन...
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(जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय की एक दीवार पर पेंटिंग)
मालगाड़ी पर लदा कोयला आज उनकी देह छोटी हो गई है
भरी है आग कोयले में भूख लेकिन बढ़ गई है
छुपी है आग में बिजली सोख लेते वे नदी नद झील सागर
कि जिससे मालगाड़ी चर गए सब खेत जंगल
चल रही है पी गयीं सारी हवाएं
और यह कोयला कभी जो था भावना की भूमि तक में
घना जंगल, जहाँ विचरते थे डायनासोर घुस गए हैं डायनासोर
कि जिनसे बच के जिन्दा बने रहना और उनकी दाढ़ में अब
तब नहीं इतना असंभव था लग चुका है स्वाद सपनो का
कि जितना आज
दिनेश कुमार शुक्ल