रविवार, 13 दिसंबर 2015

'कर्नल साहब' का जीतना जरूरी था

                ले. कर्नल (सेवानिवृत) यशवंत सिंह राठौर की जीत समाज में अच्छाई बची होने का प्रमाण है


साल 1992 का मानसूूृन जब उत्तर भारत में दस्तक देने की तैयारी में था तभी भारतीय थलसेना की राजपूत रेजीमेंट से लेफ्टीनेंट कर्नल यशवंत सिंह राठौर सेवानिवृत हो गए. यशवंत सिंह राठौर ऐसे समय सेना में शामिल हुए थे जब हम अपने पड़ोसी चीन की विश्वासघात से आहत थे, न सिर्फ सेना बल्कि पूरे देश का मनोबल बुरी तरह टूट चुका था. सेना की प्रतिष्ठित नौकरी करते हुए जो सेवाभाव उनमें था वह सेना छूटने के बाद भी वैसा ही बना रहा, बस इसके स्वरुप में कुछ परिवर्तन आ गया और इसी सेवाभाव के कारण उन्होंने अगले साल ही अपने गांव में स्कूल खोलने का फैसला किया. सेना से भले ही वे रिटायर हो गए थे लेकिन गांव वालों के लिए वे आजीवन 'कर्नल साहब' हो गए.

कर्नल साहब अब एक नई पारी खेलने के लिए मैदान में उतरे. उन्होेने उत्तर प्रदेश के जालौन जिले में अपने छोटे से गाँव सींगपुरा, जिसमें लगभग 1200 मतदाता हैं, से ग्राम पंचायत का चुनाव लड़ा और जीत गए. 

उत्तरप्रदेश के जालौन, जहाँ मैं रहता हूँ, वहां से ये गाँव करीब 6-7 किलोमीटर की दूरी पर है. जब मैं दि्ल्ली से कुछ दिनों के लिए घर गया तो उस समय प्रदेश में पंचायत चुनाव जोरों पर थे ऐसे में उत्सुकता स्वाभाविक थी लेकिन कर्नल साहब के चुनाव ने इस उत्सुकता को कुछ ज्यादा ही बढ़ा दिया. दरअसल ऐसा इसलिए था
प्रधानी के लिए 'घोषणा-पत्र' जिसमें उन्होंने (प्रतिष्ठित)पद का उल्लेख नहीं किया
क्योंकि यशवंत सिंह जी ने अपने चुनाव के लिए स्पष्ट रूप से "घोषणा-पत्र" जारी किया था. लोकतंत्र की प्रयोगशाला में इतने छोटे प्रयोग पर मैंने इससे पहले, न कभी घोषणा-पत्र देखा था, न इसके बारे में कहीं सुना था. इसे पढ़कर और गाँव में 3-4 घंटो में करीब 20-25 लोगों से बात कर मैं ये कहने की स्थिति में हूँ कि औरों के लिए ये चुनाव पैसा कमाने या रुतबा कायम करने का जरिया हो सकता था लेकिन यशवंत जी के लिए ये 'जन-प्रतिनिधित्व' द्वारा सिस्टम को समझने, इसे 'ठीक' करने की एक बेहद ईमानदार कोशिश है.

जीवन के 7वें दशक में चल रहे यशवंत सिंह जी ने जिस स्कूल की शुरुआत की थी वह अब 12वीं तक हो गया है. इसका नाम उन्होंने अपने पुत्र लेफ्टीनेंट विक्रम सिंह के नाम पर रखा है, जो शहीद हो चुके हैं. इस स्कूल को वे 'अच्छी शिक्षा की कमी' को दूर करने का एक प्रयत्न बताते हैं.

जब मैं उनसे मिलने गया तो वे विरोधियों द्वारा अपने लगभग 15 नाम मतदाता सूची से कटवाए जाने को लेकर थोड़े परेशान थे और ऐसा होना स्वाभाविक भी है. कर्नल साहब के अनुसार 2014 के लोकसभा चुनावों में ये (15) लोग, जो उनके समर्थक हैं, गांव में मतदाता के रूप में पंजीकृत थे लेकिन उसके बाद इन सभी के नाम जानबूझकर सूची से काट दिए गए. लेकिन परेशानी के बावज़ूद उन्हें ईश्वर पर और अपनी जीत पर पूरा भरोसा था.
जब मैंने उनसे चुनाव के बारे में बात की तो बताने लगे कि "गांव में जो कार्य होते हैं उनमें चरम भ्रष्टाचार है और जो होने चाहिए वे होते नहीं. इससे गांव की जो दशा (दुर्दशा) है, देख कर दुःख होता है. लोगों ने पहले भी मुझसे चुनाव लड़ने के लिए कहा लेकिन कुछ कारणों मैं नहीं ल़ड़ा लेकिन अब तो भष्टाचार की हद ही हो गई, मैं स्थिति देखकर घबरा गया, जो पैसा विकास के लिए आता है, उस बारे में ये लोग गांव वालों को कुछ नहीं बताते, कितना पैसा आया, कहां से आया, कहां गया, कुछ पता नहीं... इसीलिए अब लड़ रहा हूँ"  साथ में कहते हैं कि अगर वो निर्वाचित हुए तो कोई खुले में शौच के लिए नहीं जाएगा, गांव में पर्यावरण संरक्षण के लिए काम करूंगा, हर साल स्वयं (निजी) के पैसों में से एक लाख रूपए जनकल्याण के लिए खर्च करूंगा. अन्य वादों को उनके घोषणा-पत्र में देखा जा सकता है.
गांव वाले भी उनकी खुले दिल से तारीफ करते हैं. लेकिन ऐसा भी नहीं है कि गांव में उनके आलोचक न हों. आलोचकों को जो बात सबसे ख़राब लगती है वो है कर्नल साहब का गाँव वालों से कटकर एकांत (isolation) में रहना. शायद इसी एकमात्र कारण से इस ग्राम-पंचायत के लिए 13 उम्मीदवार खड़े हैं.

मैं इस ब्लॉग को 24 नवंबर, जिस दिन उनसे मिला था, को ही लिखना चाहता था लेकिन फिर पत्रकारिता के कुछ मूल्यों के कारण ऐसा करने से रुक गया. आज जब परिणामों की घोषणा हुई और उनकी जीत का पता चला तो रुकने का कोई कारण नहीं रह गया. फोन पर बात करते हुए मैं उनके शब्दों को पूरी तरह न सही लेकिन बहुत हद तक तो समझ ही सकता हूँ.
यशवंत सिंह जी की जीत समाज में अच्छाई बचे होने का एक प्रमाण है. जब मेरी उनसे मुलाक़ात हुई थी तो विदा लेते वक़्त उन्होंने मुझसे खुद उनके कार्यों के ऊपर नज़र ऱखने के लिए कहा था. "अमित, अगर मैं ही भ्रष्ट हो जांऊ तो आप मेरे ही खिलाफ लिखना..."
अब, जब वो जीत गए, उनके शब्द हमेशा मुझे आकर्षित करेंगे... मैं फिर 8-10 महीनों में उनके गांव जाऊंगा और उन वादों की हक़ीकत जानने की कोशिश करूंगा जो उन्होने किए हैं.

शुक्रवार, 11 दिसंबर 2015

काम कर रहा हूँ, भले ही थोड़ा धीरे सही लेकिन पूरी ईमानदारी से कर रहा हूँः भानु प्रताप सिंह वर्मा


सदन की कार्यवाही में दिनभर की उपस्थिति के बाद अपने आवास में सहयोगियों से विपक्ष के हंगामे की चर्चा, क्षेत्र से आते समस्यायों के फोन कॉल के जवाब और आगे के दिनों में पूछे जाने वाले प्रश्नों की रुपरेखा तय करने की रणनीति के बीच पहले से बैठे हम इंतजार कर ही रहे थे कि कब हमारी बारी आएगी तभी सांसद जी का ध्यान हमारी ओर गया। चूंकि इससे पहले हमने सिर्फ फोन से ही चर्चा के लिए समय मांगा था इसलिए हमें थोड़ा इंतजार करना पड़ा बस फिर कुछ औपचारिकताओं के बाद चर्चा शुरु हुई। करीब 50 मिनट तक चली इस चर्चा को हमने अपने मित्र और राज्यसभा टीवी में पत्रकार शशांक पाठक के साथ मिल कर संपादित किया है। पेश है पूरी चर्चा...


संसद में क्षेत्रवासियों का प्रतिनिधित्व करते हुए आपको लगभग 18-19 महीने हो गए हैं लेकिन अभी तक (अगस्त 2015) आपने महज़ 66 लाख से कुछ अधिक रुपए की राशि ही अपने फण्ड (MPLADS) में से खर्च की है। इतनी कम रकम से क्या माना जाए... क्षेत्र में विकास के लिए कुछ बचा नहीं है या चुने जाने के बाद आप क्षेत्र के लोगों से कट गए हैं?
हमारी सांसद निधि की राशि तीन जिलों में बंटी हुई है... जालौन, झांसी और कानपुर देहात। पहले क्या होता था कि सांसद निधि आने के बाद उस क्षेत्र को ट्रांसफर कर दी जाती थी और वहीं काम दिए जाते थे। 2009-14 के बीच में जो सांंसद निधि मिली थी, उसका कार्यपूर्ण प्रमाणपत्र अभी तक दिल्ली के पास नहीं आया है, इसीलिए पहली बार निधि को एक ही जिले से खर्च करने का प्रावधान रखा गया है। मैनें करीब झांसी जिले को 67 लाख के काम दिए... (बीच में थोड़ा रुककर हमें समझाते हुए) हमारी विधान सभा हैं वहां भइया...
(बीच में टोकते हुए) ठीक है आपकी विधानसभा है लेकिन मेरे पास जो जानकारी है उसके हिसाब से मात्र 10.52 लाख के कार्य ही हुए हैं वहां अगस्त 2015 तक... इसके बाद भी अगर कोई कार्य हुए हों तो आपसे इस पर थोड़ा स्पष्टीकरण चाहूंगा
अगस्त में ही गए हैं (शायद)... दरअसल जो काम पूरे हो जाते हैं वही जानकारी आपके पास आती है, जो प्रस्ताव होते हैं, उनकी जानकारी आप तक नहीं पहुंच पाती और करीब 50 लाख के प्रोजेक्ट भोगनीपुर विधानसभा में प्रस्तावित हैं।
लेकिन सीमा तो 5 करोड़ की है..?
हाँ, सीमा 5 करोड़ की है तो जिले में भी तो डे्ढ़-पौने दो करोड़ के काम प्रस्तावित किए हैं जिसमें नाले का काम भी आदर्श ग्राम योजना में शामिल है।
पहले प्रस्ताव यहीं से जाता था, यहीं काउंट होता था लेकिन अब जिले में एस्टीमेट बनता है फिर वह पास होने के लिए हमारे पास दिल्ली आता है। पहले सब कुछ यहीं से होता था।
तो जटिलता बढ़ गई है इसलिए काम में देरी हो रही है?
जी हाँ
इसी से संबंधित मेरा दूसरा प्रश्न है। आप कह रहे हैं आदर्श ग्राम (हरदोई गूजर) में आपने नाले का काम दिया है लेकिन अगस्त 2015 तक आपने द्वारा किए गए कार्य शून्य हैं। वहां ऐसे पोस्टर भी लगे जिसमें आपको "गुमशुदा-सांसद" बताया गया था। इससे लगता है कि कार्य के प्रति कहीं न कहीं एक इनएक्टविटी (असक्रियता) है। जो विकास होना चाहिए वो है नहीं जबकि प्रधानमंत्री जी ने ये योजना बड़ी जोर-शोर से शुरु की थी...
आदर्श ग्राम योजना में जो इलेक्ट्रीफिकेशन का कार्य था, उसके लिए पोल मैने स्वयं खड़े होकर लगवाए है, ट्रांसफॉर्मर रखवाए। कुछ सीसी रोड उस गांव में टूटी/उखड़ी हुई थी उसे भी हमने ठीक करवाने की कोशिश की लेकिन तकनीकि समस्या के कारण वे काम नहीं हो पाए, हमारी कुछ सीमाएं हैं। नाले का काम हमने लिया है। नाले की समस्या जो वहां है एक प्रमुख समस्या है, को हमने हल करने का प्रयास किया है।
जालौन नगरवासियों की एक बड़ी मांग रही है...रेल। हर आम चुनाव में सभी उम्मीदवारों से इसका आश्वासन भी मिला। आपने भी दिया। एक आरटीआई के जवाब के अनुसार अंतिम बार 2009 में इस लाइन के सर्वे का प्रस्ताव था, उसके बाद क्या हुए... कोई जानकारी नहीं। आपने भी इस मसले का पटल पर रखना उचित नहीं समझा?
हमने जो मांग की थी, उसे आप (लोकसभा) चैनल की क्लिप में देख सकते हैं। मैंने लाइन डबलिंग का, रेलगाड़ी एक्सटेंडशन का प्रस्ताव रखा, कोंच से भिण्ड के लिए, कोंच से जालौन होते हुए दिबियापुर के लिए भी मांग रखी थी। ये मांगे अलग-अलग रुप से नहीं रखी जातीं। जब-जब हमें मौका मिलता है हम इस मांग को उठाते हैं, इसे रखते हैं।
प्रदेश में अभी हाल ही में जिला पंचायत के चुनाव हुए हैं, जिसमें जिले में पार्टी का प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा, पार्टी बुरी तरह हारी। क्या कारण है कि लोकसभा में इतनी सशक्त जीत के बाद पार्टी इतनी नीचे आ गई?
पार्टी तो नीचे नहीं आई है लेकिन ये सब, कुछ लोगों और संगठन की कमी के कारण है। हमारे जिलाध्यक्ष को पार्टी से हटा दिया गया, इतना बड़ा कलंक हमारी पार्टी पर लगा। शायद वो देश में पहले जिलाध्यक्ष होंगे जो पैसे मांगते पाए गए हों। इसका असर चुनावों पर प़ड़ा। गांव-गांव में लोगों ने कहा कि देखिए साहब ये है भारतीय जनता पार्टी। तो हमें अपने में सुधार लाना चाहिए और हम प्रयास करते हैं कि अपने को सुधारें। उनके (तत्कालीन जिलाध्यक्ष के) काम से पार्टी को नुकसान हुआ और जिला पंचायत में हमारे पास सीटें थी कितनी... सिर्फ सिरसा-कलार की सीट थी हमारे पास...
पहले से सीट कम होने का तर्क तो इसलिए वेलिड (वज़नदार/मान्य) नहीं क्योंकि (2009 से) लोकसभा में भी आपके पास कितनी सीटें थी फिर भी 2014 में 71 तक पहुंच गए?
जिला पंचायत में नहीं थी हमारे पास फिर भी हमें सीटें मिली है। जिलाध्यक्ष की गड़बड़ी की वजह से हमें नुकसान उठाना पड़ा। हमने जो विकल्प दिए थे अगर वो ही पूरे होते तो जिला-पंचायत हमारी होती।
मतलब टिकट बंटवारे में गड़्बड़ी हुई? अथवा संगठन में कहीं कोई गड़बड़ी थी, आपकी बात सुनी नहीं गई?
हमारे जिलाध्यक्ष को (उनके गलत कामोंं के कारण) उसी समय निकाला गया तो इसका असर तो पड़ेगा ही। जो भी विपक्षी गांवों में जाता, इसी बात को उठाता था।
इतना बड़ा परिवार है, संगठन का मुखिया गलती करेगा तो भुगतना पड़ेगा...कोई भी हो... यही हुआ।
इस चुनाव में न सिर्फ पार्टी हारी है बल्कि एक तरह से आपकी भी हार हुई है। मेरा मतलब आपके पुत्र से है जो न सिर्फ इस चुनाव में हारे हेैं बल्कि बुरी तरह हारे। जबकि आपकी छवि तो एक ईमानदार और स्वच्छ नेता की है फिर इस हार के क्या कारण रहे? कहीं न कहीं आपका भी तो व्यक्तिगत वोट होना चाहिए?
ये चुनाव जो हमारे पुत्र हारे हैं, हमारे लोगों ने उन्हें लड़ाया था, मेरे मना करने के बावजूद। इसमें हारने का जो कारण है- कि ये रिजर्व (आरक्षित) सीट है। ऐट के प्रधान, जो निरंजन हैं, उन्होने जिस महिला से शादी की वो सुरक्षित श्रेणी में आती हैं। पत्नी को ही उन्होने चुनाव लड़वाया तो ऐसी स्थिति में जातीय समीकरण कुछ ऐसे बदले जिससे 36 गांव के लोग, जो भाजपा को हमेशा वोट देेते आ रहे थे, पूरी तरह ट्रांसफर हो गए। कुल 64 में से 36 गांव हमसे कट गए... ऐसे समीकरणों में चुनाव जीतना संभव नहीं होता।
किस नंबर पर आए हैं आप (आपके पुत्र)?
शायद 2900 वोट मिले हैं उन्हें।
दूसरे नंबर पर भी नहीं हैं वो जबकि इस समीकरण (जो आपने बताया) के हिसाब से दूसरे नंबर पर तो होना चाहिए था!
हाँ, वो दूसरे पर नहीं आए... लेकिन चुनाव तो समीकरणों पर होते हैं। एक बार ये बिगड़े तो सब कुछ खेल ख़त्म।
एक सांसद के तौर पर हाउस (सदन) में आपकी उपस्थिति काफी अच्छी है...लगभग 100 फीसदी। आपने डिबेट्स में भी औसत से कहीं अधिक भाग लिया है लेकिन आप प्रश्न कम पूछते हैं। इन डिबेट-डिस्कशन या प्रश्नों से जिले को या पूरे क्षेत्र को कोई उल्लेखनीय लाभ मिला है? ऐसा कोई उदाहरण बताइए जो जिसे आप उल्लेखनीय मानते हों।
हमने इसी सत्र में कृषि मंत्री जी से पूछा था... कि हमारे यहां के किसानों की भलाई के लिए आपने क्या-क्या कार्य किए हैं या भविष्य में करने का प्लान है। उन्होंने बताया कि क्षेत्र के लिए एक कृषि विश्वविद्यालय स्वीकृत हो गया है। इस बार भी मैनें करीब 60 प्रश्न लगाए हैं लेकिन कुछ कारणवश वो आतारांकित में आए हैं।
आपकी जानकारी से संबंधित ही मेरा प्रश्न है कि ये तो काफी बड़े और लंबे प्रोजेक्ट हैं। तत्काल रुप से कुछ और होना चाहिए। जैसे पार्टी ने वादा किया था कि अगर वो संत्ता में आती है तो न्यूनतम समर्थन मूल्य को लागत से कम से कम 50 फीसदी अधिक करेगी। ये मुद्दे उठाइए तो न सिर्फ बुंदेलखण्ड बल्र्कि पूरे देश के किसानों को लाभ मिलेगा।
जब हमारे किसानों को फसल ही नहीं मिली, पहले सूखा, फिर औलावृष्टि से हमारा किसान तबाह हो गया है तो हम मिनिमम प्राइज़ डेढ़ गुणा भी कर दें तो हमारे यहां किसान को क्या लाभ होगा। हमारे प्रधानमंत्री जी ने पहली बार औलावृष्टि के साथ अधिक वर्षा से जो फसल नष्ट हुई है, उसे भी आपदा श्रेणी में शामिल करवाया। दरअसल उत्तरप्रदेश की सरकार अपने कार्यकर्ता किसानों की फसल में तो 70-75 फीसदी नुकसान दिखाती थी वहीं गरीब किसानों की फसल में 45-47 फीसदी का ही नुकसान दिखाती थी। इस कारण इन किसानों को लाभ नहीं मिल पाता था। हम सभी ने इस मुद्दे पर विशेषतौर से मांग की थी जिसके बाद प्रधानमंत्री जी ने आपदा के मानकों को 50 फीसदी से घटाकर 33 फीसदी कर दिया इसके अलावा प्रदेश सरकार जो राहत राशि देती है उससे डेढ़ गुणा देने का फैसला किया। ये सभी घोषणाएं हमारी मांगों के बाद ही हुई हैं।
आपने जिले के लिए केंद्रीय विद्यालय, पंचनदा बांध, जिले में पर्यटक स्थलों की घोषणा... आदि के कई मांगों को रखा है। इस प्रयासों में कितनी सफलता मिली है आपको?
केंद्रीय विद्यालय की हमने मांग की तो जवाब मिला कि जनपद जालौन में ऐसी कोई जगह समुचित नहीं मिल पा रही है जहां ये खोला जा सके। इस पर हमने जालौन नगर में जो मेला ग्राउण्ड है, उसे चिन्हित करते हुए सूचित किया है कि यहां ये विद्यालय खोला जा सकता है। जवाहर नवोदय विद्यालय के लिए भी हमने जमीन के लिए प्रस्ताव दिया था। ये कोटरा या रामपुरा का प्रस्ताव रखा था, लेकिन कुछ कारणवश विद्यालय वहां नहीं बन सका।
पचनदा के लिए हमने फिर कुछ दिन पहले ही तीसरी बार मांग की है। हम तो मांग ही कर सकते हैं क्रियान्वयन तो प्रदेश सरकार को ही करना है। फिर ये तीन प्रदेशों के बीच का मामला है। उत्तरप्रदेश और मध्यप्रदेश से एनओसी मिल जाती है तो राजस्थान में पेंच फंस जाता है।
आप चौथी बार लोकसभा में क्षेत्रवासियों का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं, एक बार विधानमण्डल के लिए भी चुने जा चुके हैं। इतने अनुभव के बावजूद अभी तक मंत्री नहीं बनाए गए। क्या कारण हैं?
सांसद बन गया हूँ, जनता ने इतनी बार चुना है, ये क्या कम बात है? पार्टी 1989 से टिकट दे रही है। मुझे दस बार टिकट दिया गया... ये कम है? लोग एक बार के बाद ही अलग कर दिए जाते हैं। पार्टी मुझ पर एहसान, जी हाँ, एहसान ही कर रही हैै, ये क्या कम है? मंत्रीपद मेरे लिए महत्वपूर्ण नहीं है, मेरे लिए महत्वपूर्ण है कि पार्टी प्रगति करे, आगे बढ़े।
आप इतने से संतुष्ट हैं?
जी हाँ, सांसद हूँ, संतुष्ट हूँ। पार्टी ने जो दिया उससे संतुष्ट हूँ।
पार्टी ने जो दिया उससे संतुष्ट हैं या लोगों का प्रतिनिधित्व करने से, उनकी सेवा करने का आपको जो अवसर मिला, उससे संतुष्ट हैं?
भाजपा ने जो दिया उससे भी संतुष्ट हूँ, लोगों की सेवा करके भी संतुष्ट हूँ। काम कर रहा हूँ, भले ही थोड़ा धीरे सही लेकिन पूरी ईमानदारी के साथ कर रहा हूूँ। ईश्वर न करें हम पर कोई दाग आए जिससे मुझे या पार्टी को कोई बदनामी सहनी पड़ी। प्रयास करता हूँ कि ईमानदारी से जनता की सेवा करूं चौबीसों घंटे उनके साथ रहूं।
आप चौबीस घण्टे जनता के साथ रहने की बात कर रहे हैं जबकि आप पर ये आरोप लगता है कि चुनाव के बाद आप लोगों से कट जाते हैं फिर तभी आप दोबारा दिखाई देते हैं जब चुनाव आता है। ये ऐसी शिकायत है जो क्षेत्र में कहीं भी सुनी जा सकती है। जैसे मैनें पहले भी एक पोस्टर का ज़िक्र किया था।
वो पोस्टर गलत है...पूरी तरह गलत मैं साबित कर सकता हूँ क्योंकि अगर उस गांव के लोग कहते हैं कि मैं कभी गांव में आया नहीं तो हो सकता है वो राजनीति से प्रेरित लोग हैं। क्योंकि हम जब भी घर जाते हैं तो वह गांव (अनिवार्य रुप से) रास्ते में ही पड़ता है। कार्यकर्ताओं के साथ हम दर्जनों बार उस गांव में जा चुके हैं। कई बार डीएम के साथ भी उस गांव में गया हूँ।
उरई से कोंच और कोंच से जालौन के बीच रोड कनेक्टिविटी बहुत ख़राब है... आपने भी अनुभव किया होगा। 
जी, मैं इससे परिचित हूँ और इस समस्या को मैंने हाउस में उठाया है और मांग की है कि इसे प्रधानमंत्री (ग्राम) सड़क योजना के तहत लिया जाए। पर प्रदेश सरकार कम से कम प्रस्ताव तो भेजे।
इन्हें प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के तहत कैसे लिया जा सकता है? ये मार्ग तो दो नगरों को जोड़ते हैं?
नहीं अब ऐसा नहीं है। यूपीए सरकार के दौरान इसके नियमों में कुछ परिवर्तन किए गए हैं जिसके अनुसार अब ये संभव है। क्षेत्र में कई जगह इस योजना के अन्तर्गत काम भी हुआ है। इन निर्माण कार्यों में काफी भ्रष्टाचार भी हुआ है...ठेकेदार से लेकर नेताओं के बीच जो बंदरबांट हुई है, उसकी जांच के लिए प्रयासरत हूँ। मैंने लिख कर निवेदन किया है कि इनमें से कोई भी मार्ग ले लिया जाए और उसकी जांच करा ली जाए। कुकरगांव के पुल के लिए भी हमने प्रयास किया। जब ये टूटा भी नहीं था तभी हमने ये मुद्दा उठाया था।
मुझे उम्मीद है कि नए साल कोंच से जुड़े मार्ग बन जाएंगे। यमुना नदी पर तीसरा पुल ( कालपी और औरेया के बीच में) जिसका काम शुरु तो हुआ था पर आधा बनने के बाद बंद कर दिया गया था...हमने ये मुद्दा सदन में उठाया जिस पर स्वयं मुलायम सिंह ने आश्वासन दिया।
आखिरी प्रश्न, 2017 में पार्टी का वनवास खत्म होगा जमीनी सच्चाई को देखते हुए ईमानदार जवाब दीजिए, पूर्ण बहुमत या सबसे बड़ा दल या कुछ और?
भाजपा उत्तरप्रदेश में पूर्ण बहुमत की सरकार बनाना चाह रही है और निश्चित ही 2017 में हमारी पूर्ण बहुमत की सरकार बनेगी।
बिहार के परिणामों से उत्तरप्रदेश के में फर्क पड़ेगा? जनमानस में तो ऐसा दिख रहा है।
बिहार में हमारा चुनाव अच्छा था लेकिन बीच-बीच में ऐसी परिस्थितियां आईं, ऐसे बयान आए कि लोग हमसे दूर होते गए...देखिए हम लोग राजनीति कर रहे हैं, लोगों की सेवा कर रहे हैं। ऐसी स्थिति में जब भी लोगों को लगता है कि हम ऐसा नहीं कर पाएंगे वो अलग होने लगते हैं। कुछ बयानों की वजह से हमारा जो वोट था, वह खिसक गया। जिसकी परिणति हमें स्वीकार करनी पड़ी। हम उत्तर प्रदेश में ऐसा नहीं होने देंगे।
इससे इतर एक और सवाल प्रधानमंत्री जी की "पहल" यानि सक्षम नागरिकों से गैस सब्सिडी छोड़ने की अपील, क्या आपने इस अपील पर गैस सब्सि़डी छोड़ी है। (ये सवाल बाद में किया गया था फोन पर)
हंसते हुए बताया कि देखिए गैस सब्सिडी का तो ऐसा है कि जब से सांसद बने हैं तभी से सब्सि़डी लेना बंद कर दिया था। प्रधानमंत्री जी की अपील के पहले से ही।


शशांक पाठक राज्यसभा टीवी में पत्रकार हैं...इन्हें ट्विटर @_ShashankPathak पर फॉलो किया जा सकता है.
(इस चर्चा को आप FaltuKhabar.comपर भी पढ़ सकते हैं.)