मंगलवार, 3 नवंबर 2015

समान फसलों के लिए घरेलू किसानों के मुकाबले आयातकों को दिए गए अधिक पैसे

                                                                                   एक फैक्ट-फाइंडिंग रिपोर्ट

सूचना के अधिकार (RTI) से मिली जानकारी के मुताबिक़ सरकार ने घरेलू किसानों को उनकी फसल के लिए कम कीमतें दी हैं जबकि उसी फसल के लिए विदेशी आयातकों को अधिक. RTI के जवाब में कृषि मंत्रालय (जिसको मंत्रालय ने department of commerce से उठाया है) ने बताया है कि वित्तीय वर्ष 2013-14 के लिए सरकार ने 10,902480 टन चावल 3,385,819.53 लाख रुपयों मेँ आयात किया, वहीँ इसी अवधि में  5,572010 टन गेंहू 1,052,900.19 लाख रुपयों मेँ आयात किया गया. इस अवधि में कांग्रेस नेतृत्व वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की सरकार केंद्र में सत्तासीन थी.
इन आकंड़ों के आधार पर जब कुछ कैलकुलेशन किए जाएं तो गेहूं की दर ₹1889.62 प्रति कुंतल निकल कर आती है, जबकि चावल ₹3105.54 प्रति कुंतल के हिसाब से आयात किया गया. लेकिन हमें एक बात ध्यान रखनी होगी कि सरकार हमेशा 'धान' (Paddy) का न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) घोषित करती है ना कि 'चावल' (Rice) का, और जो जवाब कृषि मंत्रालय ने RTI में दिया है उसमे 'चावल' का आयत मूल्य दिया गया है. जिसमें 3105.54 रूपए प्रति कुंतल चावल का आयातित मूल्य है. अगर हमें दोनों की तुलना करनी है तो हमें धान को चावल में बदलना पड़ेगा. इसीलिए...
---100 किलो धान में औसतन 70 किलो चावल और 30 किलो भूसी/भूसा निकलता है
---इस हिसाब से सरकार ने 70 किलो के लिए किसान को ₹1350 (MSP) रूपए देने का वादा किया था.
---इसको अगर प्रति कुंतल में बदला जाए तो यह हुआ 1928.57 रूपए प्रति कुंतल
---यह तब होगा जब निकले हुए 30 किलो के भूसे का कोई मूल्य ना माना जाए.
--- लेकिन अगर बाजार में प्रचलित मांग को देखा जाए तो जो भूसा/भूसी धान से चावल निकालने में निकलती है, वह जानवरों को खिलाने के काम आती है या फिर उसमें से भी तेल निकाला जाता है और उसका मूल्य 1000 प्रति कुंतल तक (सामान्य रूप से) होता है.
---अब अगर इस भूसा/भूसी के मूल्य को घटा दिया जाए 30 किलो का मूल्य हुआ 300 रूपए, तो चावल के लिए किसान को सरकार 1500 रूपए प्रति कुंतल का भाव देती है.

अब अगर इसी अवधि में इन दो जिंसों के लिए सरकार द्वारा न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) को देखें तो ये गेहूं के लिए ₹1400 और धान ₹1310-1345 (ऊपर गणना करने के लिए हमने 1350 मान लिया है) के लिए था. इस हिसाब से सरकार ने घरेलू किसानों के मुक़ाबले गेहूं के लिए विदेशी व्यापारियों को 490 रुपए प्रति कुंतल ज्यादा दिए जबकि चावल के लिए उसने करीब 1600 रूपए प्रति कुंतल से अधिक का भुगतान किया.
इन आंकड़ों से स्पष्ट है कि हमारी सरकारें अन्नदाता किसान का कितना भला सोचती हैं. वे विदेशी व्यापारियों को तो अधिक कीमतें देने के लिए तैयार रहती हैं लेकिन उसी फसल के लिए घरेलू किसान को कम कीमतें देती हैं. अगर यही भुगतान घरेलू किसान को करने का वादा किया गया होता तो शायद आयात करने की नौबत ही न आती. इतना ही नहीं, अभी कृषि जो घाटे का सौदा बनी हुई है और जिस कारण रोज-रोज किसानों की आत्महत्या की ख़बरें आती रहती हैं, वे न आती. लेकिन देश में किसानों की सुनाने वाला है कौन?

(ये रिपोर्ट मूलतः www.faltukhabar.com के लिए लिखी गई थी। आप इसे वहां भी देख सकते हैं)
www.faltukhabar.com/author/amit/