बुधवार, 20 नवंबर 2013

भारत रत्न: मनीष तिवारी को खुला पत्र

आदरणीय मनीष जी,
ये पत्र मैं आपको भारत रत्न की चर्चा पर अटल बिहारी वाजपेयी पर आपके द्वारा की गई आपकी टिपण्णी के आलोक में लिख रहा हूँ।
सबसे पहले तो मुझे बीजेपी की अटल जी को भारत रत्न देने की मांग ही समझ में नहीं आती। पुरस्कार कभी मांगे नहीं जाते। लेकिन इसके साथ मैं ऐसा भी नहीं मानता कि पुरस्कार मिलने या न मिलने से कोई फर्क पड़ता है। पुरस्कार न सिर्फ पाने वाले व्यक्ति को उसके कार्यों को वैद्यता देकर उसे प्रोत्साहित करते हैं बल्कि इसी बहाने समाज के लोगों को समाजहित/राष्ट्रहित में कार्य करने को भी प्रोत्साहित करते है। अगर बीजेपी लगता है कि अटल जी भारत रत्न के लिए डिसर्व करते हैं तो उसे कम से कम सत्ता में बीजेपी को अपनी बारी का इंतज़ार करना चाहिए। लेकिन जब राजनैतिक दल अपने ही दलों के नेताओं को भारत रत्न जैसा सर्वोच्च पुरस्कार देते हैं तो इससे न सिर्फ पुरस्कार पाने वाले व्यक्ति बल्कि इसकी प्रतिष्ठा पर भी सबालिया निशान लगता है।

खैर छोडिए इन बातों को। अब मैं मूल मुद्दे पर आता हूँ। मुझे उस राजनितिक/सामाजिक चितंक का नाम नहीं पता जिसने कहा था कि जो अपने इतिहास को भूल जाते हैं वे इसी इतिहास में कहीं गुमनाम होकर खो जाते हैं। बस इतना याद है कि इस बात को आपकी पार्टी के आपके साथी राशिद अल्वी साहब ने दोहराया था। इसी के साथ आपकी उस प्रतिक्रिया का जिक्र भी यहीं ठीक रहेगा जो आपने मायावती पर अपनी ही मूर्तियां लगवाने पर की थी।आपके अनुसार मूर्तियां लगाने से देश के कानून नहीं परम्पराएं और मर्यादाएं रोकती हैं और जो इसे नहीं मानते वो इतिहास के कूड़ेदान में चले जाते हैं।

आपने कहा था कि चूंकि गुजरात मुद्दे पर अटल बिहारी वाजपेयी ने मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी को तो राजधर्म निभाने की नसीहत दी थी लेकिन नरेन्द्र मोदी को हटाकर स्वयं राजधर्म का पालन नहीं किया। और इस प्रकार गुजरात की घटना उनके दामन पर काले धब्बे लगाती है।

अब जिसके दामन पर दाग लगे हो तो फिर पुरस्कार कैसे दिया जाये? वो भी भारत रत्न सरीखा सर्वोच्च?
आगे बढ़ने से पहले मैं यहाँ स्पष्ट कर दूं कि भारत को बनाने में जिसका भी योगदान इतिहास के बिखरे हुए पन्नो में दर्ज है उन हस्तियों की कमियों को खोज कर उनके अच्छे कार्यों को नकारने की आदत मेरी कभी नहीं रही है लेकिन जब इन हस्तियों के बीच अपने और पराए की रेखा खींच कर अपनों का गुणगान और दूसरों की बुराई की जाती है तो एक सीमा बाद चीजें असहनीय हो जाती हैं। ये अगर अपनों के गुणगान तक ही सीमित रहे तब भी सहन किया जा सकता है।

राजनितिक जीवन में महज़ कुछ छीटों के कारण अगर किसी को भारत रत्न के अयोग्य ठहराया जा सकता है तो आपातकाल ने श्रीमती इंदिरा गाँधी के राजनैतिक जीवन के पर छींटे ही नहीं लगाए है पूरा दामन ही काला कर दिया है। पंजाब में अपनी पार्टी को ज़माने  लिए क्या-क्या खेल खेले गए। दूसरा राजीव गाँधी के कार्यकाल में शाहबानो, अयोध्या ताला प्रकरण जैसे गैरजरूरी मुद्दों पर फैसले लिए गए। यूनियन कार्बाइड के एंडरसन को सरकार की पहल पर सकुशल भारत से जाने दिया गया इससे भी बढ़कर बोफोर्स मामले में प्रधानमंत्री का नाम आया। यहाँ आप बोफोर्स पर सीबीआई की क्लीन चिट का हवाला दे सकते हैं लेकिन जब राजीव जी को भारत रत्न दिया गया तब वो आरोपी ही थे। और दुर्भाग्यवश पेड़ गिरने से धरती भी उन्ही के आगमन के समय हिली थी।

कभी राजनीति से फुर्सत मिले तो एक निवेदन हैं ऊपर बताई बातों पर कुछ पढने के अलावा उस इतिहास को भी पढ़िए जिसमे भगत सिंह की विचारधारा को उग्रवादी बता कर उन्हें और उनके साथियों को 'आतंकवादी' कहा गया है। अगर ये सिर्फ इतिहास में एक इतिहासकार का पक्ष भर मानकर टाला जा सकता था तो जरूर इसकी यहाँ चर्चा न करता। ये वो अधिकृत इतिहास है जिसे न जाने कितनी पीढियां पढ़कर आगे बढ़ चुकीं हैं बल्कि निरंतर क्रम चल रहा है। अब जब ऐसा हम पढ़ेगें तो कैसे कोई भगत सिंह के कार्यों को याद कर उन पर गर्व करेगा? भारत रत्न तो दूर की बात है। वैसे भी आपकी सरकार बिना दाग वालों को रत्नों से नवाजती है फिर भगत सिंह इतिहास के हिसाब से 'आतंकवादी' थे.!! फिर मेज़र ध्यानचंद का दामन भी दागदार नहीं है न ही वो अपने-पराए में बंटे हुए है फिर उन्हें 'सुपरसीड' करने का कारण भी समझ में नहीं आता। ऐसा लगता है खेल के क्षेत्र में भारत रत्न दे कर आपकी सरकार ने भावनाओं को भुनाने (कैश कराने) की कोशिश है। भारत रत्न की योग्यता रखने वालों संख्या अपने -अपने हिसाब से घट-बढ़ सकती है।

बस अपनी बात को अंज़ाम तक पहुंचाने की कोशिश करते हुए यही कह सकता हूँ कि आप विस्टन चर्चिल भी नहीं हैं जो दावा कर सकें कि इतिहास आपका मूल्यांकन सही ही करेगा क्योकि आप ही इतिहास लिख रहें हैं। देश की सीमाओं से परे व्यक्तित्व रखने वाले विरले ही होते हैं अमूमन राष्ट्र ही सर्वोच्च होता है। एक परिवार का अनुसरण वर्तमान बना सकता है और थोडा-बहुत भविष्य भी लेकिन इतिहास में जगह नहीं दिला सकता। काल का चक्र किसी को नहीं छोड़ता। आज जो वर्तमान है कल भूत बन जाएगा। हर भूत इतिहास नहीं बनता। इतिहास का कूड़ादान बहुत बड़ा है।

 सधन्यवाद
 आपका
अपने देश के इतिहास और इसके नायकों पर गर्व करने वाला एक आम नागरिक