'मानसून' शब्द भर से बारिश का एहसास होने लगता है |
फिर अगर बात भारतीय मानसून को समझने की हो तो इस जटिलता में और चार चाँद लग जाते हैं। इसमें चार-पांच सिद्धांत हैं। मेरा मानना है कि जिस तरह विदेशियों के लिए भारत की विविधता में एकता को समझाना एक चुनौती है वैसे ही भूगोल में ज़रा सी भी रूचि रखने वालों के लिए भारतीय मानसून का खाका खींचना मुश्किल है। ये बारिश के बाद बनने वाले उस इन्द्रधनुष के सामान है जिसे शुरू में तो देखने के लिए मशक्कत करनी पड़ती है लेकिन एक बार जब दिमाग में पूरी छवि बन जाती है तो सातों रंग अपनी आभा बिखेरते हुए स्पष्ट नज़र आते हैं।
मेरे लिए मानसून समझना हमेशा से ही एक रोचक विषय रहा है। विभिन्न परीक्षाओं के लिए भूगोल पड़ना ही पड़ता है और जब भूगोल है तो पवने भी चलेगीं, बारिश भी होगी और मानसून भी आएगा।जाएगा।
औरों के सामान मेरे लिए भी मानसून को समझना नामुंकिन नहीं तो मुश्किल जरूर था। 3-4 बार सर खपाने के बाद भी परिणाम वाही ढाक के तीन पात वाला रहा। फिर मैंने सोचा कि क्यों न जब बारिश हो तभी इस विषय को पढ़ा जाए। मैंने ऐसा ही किया। जब भी वारिश होती, मेरी भूगोल की किताब खुल जाती। पहले जितना सर खपाना पड़ता था अब उससे कम में ही काम चल जाता और समझने में भी आसानी होने लगी।
पेड़ का पत्ता-पत्ता जगमगाने लगा |