गुरुवार, 28 फ़रवरी 2013

"आपका बजट, आपके हाथ" - लक्ष्य 2014




वित्तमंत्री पी.चिदम्बरम ने 2009 दोहराकर 2014 फ़तह करने की योजना के साथ ये बजट पेश किया है। वित्तमंत्री ने "आपका बजट, आपके हाथ" से अपना बजट भाषण शुरू करके विना कुछ कहे सब कुछ कह दिया है। बढ़ते राजकोषीय घटे के बीच वित्तमंत्री ने सभी फ्लैगशिप कार्यक्रमों में धन का आवंटन बढ़ाया है। किसानो के लिए विशेष रियायती दर पर ऋण की योजना को जारी रखते हुए इसके बजट में बढ़ोत्तरी प्रसंशनीय है लेकिन इसके आधिकतम भाग तक ज़रूरतमंद किसानों की पहुँच सुनिश्चित करनी होगी। साथ ही माध्यम वर्ग को आयकर में मामूली छूट, घर की खरीद में छूट से लुभाने की कोशिश की है। विरोध को दरकिनार करते हुए डायरेक्ट कैश ट्रांसफर को पूरे देश में लागू कर सरकार इस योजना को 'वोटों की मशीन' के रूप में देख रही है। बालात्कार पीड़िता के नाम पर फंड की घोषणा और महिलाओं के लिए विशेष योजनायें चुनाव में माध्यम वर्ग की भूमिका को ध्यान में रखकर ही बनाई गयीं है।
सालाना एक करोड़ से अधिक आय पर दस प्रतिशत का सरचार्ज लगाया जाना भी महत्वपूर्ण है लेकिन कर संग्रहण तंत्र में सुधार की जरूरत है। लेकिन अगर सरकार राजकोषीय घाटे को लेकर वास्तिविक गंभीर है तो रक्षा बजट में बढ़ोत्तरी का निर्णय क्यों लिया गया? चालू खाते के घाटे को नियंत्रित करने के लिए सोने का आयात हतोत्साहित करने की जरूरत थी लेकिन ज्वेलरी को सस्ता करने करने का निर्णय इसके विरोधाभाषी है। इसके साथ ही वित्तमंत्री ने कोयले के बढ़ते आयात को चालू खाते के लिए चिंता का कारण बताया लेकिन दूसरी ओर कोयले का निर्यात दस लाख टन को पार कर रहा है।
हाल ही में प्रकाशित रिजर्व बैंक ऑफ़ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार भारत में मंहगाई की दर दुनिया के अन्य देशों की अपेक्षा सबसे ज़्यादा है लेकिन सरकार हर बजट में इसको कम करने की कसमें खाती दिखाई देना चाहती है लेकिन वास्तिविकता कमर तोडती मंहगाई नित नए आयाम छू रही है। डीटीसी मामला आगे न बढ़ना भी समझ से परे है।

(भारतीय जनसंचार संस्थान (IIMC) के "बजट-2013-14" के स्पेशल अंक के संपादकीय पृष्ट पर प्रकाशित त्वरित टिप्पणी)

मंगलवार, 26 फ़रवरी 2013

इतिहास की पटरी पर भारतीय रेल

अंग्रेंजों ने अपने हितों के लिए भारत में रेलों की शुरुआत की। इस समय रेलों को भारत में लाने का उद्देश्य कच्छे माल को देश के अन्दर अन्य बंदरगाहों तक पहुचना था। रेल निर्माण की दिशा में पहला प्रयास डलहौजी ने 1846 में किया था लेकिन भारत में पहली रेल 16 अप्रैल 1853 में मुंबई (तत्कालीन बम्बई) से थाणे के बीच 34 किमी चली थी। इस समय कार्ल मार्क्स के अनुसार रेलवे व्यवस्था ही भारत के विकास की अग्रदूत बनेगी। रेलवे के प्रसार में अंग्रेज इंजीनियर रोबर्ट मैटलैंड की भूमिका उल्लेखनीय रही थी। पहली सवारी गाड़ी हावड़ा से हुगली के बीच 15 अगस्त 1854 को चली। यह 24 मील की यात्रा थी। मुंबई से कोलकाता के बीच सीधी रेल यात्रा की शुरुआत 1870 में हुई। दक्षिण में पहली रेल 1 जुलाई 1856 में मद्रास रेलवे कंपनी द्वारा व्यासर्पदी जीवा निलयम से वालाजाह रोड के बीच चलाई गई। भारत में रेलों के जाल बिछाने के लिए ग्रेट इंडियन पेनिन्सुला रेलवे नामक कम्पनी बनाई गई, 1900 में इसे सरकार ने खरीद लिया। इस समय विभिन्न रियासतों की अपनी-अपनी रेल कम्पनियां थी लेकिन 1907 तक लगभग सभी कम्पनियों को सरकार ने अपने नियंत्रण में ले लिया।
1900 के करीब कर्जन के समय भारत में रेलवे का सर्वाधिक विस्तार हुआ।
 रेल में शौचालय की सुविधा की शुरुआत प्रथम श्रेणी में 1891 और निचले दर्जे में 1907 में हुई।
भारत में पहली विद्दुत रेलगाड़ी 3 फरबरी 1925 बॉम्बे वीटी से कुरला के बीच चली।
 1924 रेल विभाग के लिए कोई अलग से प्रावधान नहीं था इसके लिए धन आम बजट में से किसी अन्य मंत्रलय जैसे ही धन का आवंटन किया जाता था लेकिन 1921 ईस्ट इंडियन रेलवे समिति ने इसे अलग करने की सिफारिश की, फलस्वरूप 1924 से रेलवे के लिए वित्त मंत्रालय से अलग कर दिया गया तभी से इसके लिए अलग से बजट का प्रावधान कर दिया गया 1924 में रेल का बजट भारत के आम बजट का लगभग 70 प्रतिशत था जो आज लगभग 14-15 प्रतिशंत तक रह गया है।
दुरंतो का डिजायन ममता बनर्जी ने स्वयं बनाया है
नई-दिल्ली भोपाल शताब्दी भारत में सबसे तेज़ चलने वाली रेलगाड़ी है जो सात घंटे चालीस मिनट में 704 किमी दूरी तय करती है। रेलवे में कम्प्यूटरी कृत आरक्षण प्रणाली की शुरुआत दिल्ली में 1986 में हुई।
 भारतीय रेल (आईआर) एशिया का सबसे बड़ा रेल नेटवर्क है तथा एकल प्रबंधनाधीन यह विश्व का दूसरा सबसे बड़ा रेल नेटवर्क है। 
यह 150 वर्षों से भी अधिक समय तक भारत के परिवहन क्षेत्र का मुख्य संघटक रहा है। विश्व का दूसरा और एशिया का सबसे बड़ा रेल नेटवर्क  है। यह नेटवर्क लगभग  63,000 कि.मी.से अधिक मार्ग की लंबाई पर 7,100 से अधिक स्‍टेशन पर फैला हुआ है। भारत में इस समय तीन तरह की रेल लाइने हैं- जिसमें ब्राड गेज 1.676 मीटर, गेज 1 मीटर और नैरो गेज 0.762-0.610  मीटर है। भारत में सबसे लम्बी रेलगाड़ी डिब्रूगढ़ से कन्याकुमारी के बीच चलने वाली विवेक एक्सप्रेस है, जो 8286 किमी की दूरी तय करती है।
जल्द ही डबल डेकर ट्रेने भी दौड़ती नज़र आएंगी 

शुक्रवार, 15 फ़रवरी 2013

वार्षिक वित्तीय विवरण-'बजट'

हम सभी हर वर्ष फरबरी के अंत में बजट शब्द खूब सुनते हैं।-"बजट सत्र फलां तारीख से शुरू होगा", "सरकार बजट में इस बार क्या क्या सस्ता करेगी, क्या क्या महगा करेगी", "इस बार का बजट लोकलुभावन है", या "इस बजट से मंहगाई बढ़ेगी" आदि-आदि।

बजट सत्र में रेल बजट, आर्थिक सर्वेक्षण और आम बजट आते हैं। आर्थिक सर्वेक्षण वित्त मंत्रालय के मुख्य आर्थिक सलाहकार द्वारा तैयार किया जाता है जो इस समय राघुराम राजन जी हैं।
लेकिन क्या आप जानते हैं कि हमारे संविधान में कहीं भी 'बजट' शब्द का कोई उल्लेख नहीं है। तो फिर ये बजट-बजट आखिर है क्या??
दरअसल बजट शब्द फ्रांसीसी भाषा के bougette शब्द से निकला है जिसका अर्थ होताहै-चमड़े का थैला. 
1733 इंग्लैंड के वित्तमंत्री (चांसलर ऑफ एक्सचेकर) बजट से सम्बंधित कुछ कागजात एक बैग में लेकर संसद में गए तो अगले दिन समाचार पत्र में एक कार्टून प्रकाशित किया और उसमें लिखा 'बजट खोला गया'। तभी से बजट शब्द चलन में आया और ये हिंदी में भी बजट ही रहा। 
ये तो हुयी बजट शब्द की बात अब ये हमारे यहाँ क्यों प्रयोग में लाया जाता है?
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 112 के अनुसार राष्ट्रपति हर वर्ष सरकार से संसद के दोनों सदनों में "वार्षिक वित्तीय विवरण" रखने के लिए कहते है जिसके अंतर्गत ही जो विवरण सरकार रखती है उसे ही हम आम बोल-चाल की भाषा में बजट कहते हैं। बजट में मुख्यतया आने वाले वर्ष के लिए आय और व्यय का लेख जोखा होता है। यह वर्ष 1 अप्रैल से 31 मार्च तक होता है। 1967 के पहले ये अवधि 1 मई से 30 अप्रैल तक होती थी लेकिन क्योकि भारत एक कृषि प्रधान देश है तो कृषि में उत्पादन के हिसाब से ये नयी अवधी तय की गयी है। फ्रांस और बेल्जियम जैसे देशों में ये 1 जनबरी से 31 दिसंबर के बीच होता है।
बजट सत्र किसी वर्ष का पहला सत्र होता है अतः संविधान के अनुसार इस सत्र का आरम्भ दोनों सदनों में राष्ट्रपति जी के अभिभाषण से होता है।
एक बजट में कुल तीन वर्षों के आकड़े होते हैं। जैसे जब इस वर्ष का आम बजट पेश किया जाएगा तो उसमें 2011-12 के वास्तविक आकड़े, 2012-13 के संसोधित अनुमान, और 2013-14 के लिए आय और व्यय के रूपरेखा रहती है। बजट में कुल 109 मांगे होती है जिसमें 103 मांगे लोक व्यय से और 6 मांगे रक्षा व्यय से सम्बंधित होती है।
एनडीए सरकार (अटल जी की सरकार) के पहले बजट शाम को 5 बजे पेश किया जाता था। बजट को शाम 5 बजे पेश करने की पृथा अंग्रेजों के जमाने से ही चल रही थी, इसका कारण था कि यहाँ के शाम के पाँच बजे ब्रिटेन में सुबह 11:30बजे संसद का सत्र शुरू होता था तो अंग्रेज अपने यहाँ की संसद के अनुसार यहाँ भी व्यवहार करते थे।
एनडीए सरकार ने 1999 में गुलामी की इस पृथा को बदलते हुए इसके पेश करने का समय भारतीय समयानुसार सुबह 11 बजे कर दिया। (11 बजे ही संसद में कार्यवाही शुरू होती है)
बजट के बारे में एक तथ्य यह भी है कि जब विश्वनाथ प्रताप सिंह वित्त मंत्री बने तो उन्होंने बजट पर वित्तमंत्री का नाम लिखने की परंपरा शुरू की, इससे पहले किसी भी मंत्री का नाम बजट पर नहीं होता था।

वित्तमंत्री के रूप में पी चिदंबरम "bougette"लिए संसद जाते हुए 
भारत में पहला बजट 7 अप्रैल 1860 में जेम्स विल्सन द्वारा पेश किया गया। किसी भारतीय द्वारा पहला बजट 26 जनबरी 1947 को पेश किया गया, ये पहले भारतीय आर. के. षणमुखम शेट्टी थे। ये बजट अंतरिम बजट था (अंतरिम बजट तब आता है जब लोकसभा का विघटन हो  चुका हो या हाल में ही नई सरकार ने कार्यभार संभाला हो) और गणतंत्र भारत का पहला बजट जान मथाई ने फरबरी 1950 में पेश किया था।
बजट संसद में पेश होने और मंत्री के भाषण के बाद संसद में सत्र का स्थगन हो जाता है, फिर कुछ दिनों के अंतराल के बाद  विभिन्न मंत्रालय की जो भी मांगे होती हैं उन पर मतदान होता है। बजट सत्र में इस अंतराल के दौरान संसद की विभिन्न समितियां मंत्रालयों की मांग पर चर्चा करती है। उसमें उन्हें जो राशि अनावश्यक लगती है उसे वे काट देतीं हैं। संसद की ये स्थायी समितियों में सभी दलों के सदस्य होते हैं और ये सदस्य पार्टी लाइन से उपर उठकर निर्णय लेते हैं। विभिन्न दलों के इस सदस्यों पर पार्टी व्हिप का भी कोई असर नहीं करता, यहाँ अगर कोई सदस्य पार्टी के विचार से हटकर राय रखता है तो उस पर कोई कार्यवाही नहीं की जा सकती। सरकार यदि संसद में बजट पारित करवाने में असफल रहती है तो माना जाता है कि सरकार ने बहुमत खो दिया और उसे इस्तीफ़ा देना होता है।
अभी तक सबसे ज्यादा बार बजट पेश करने का श्रेय मोरार जी देसाई को है जिन्होंने 10 बार बजट पेश किया था, पी चिदंबरम जी अगर अगले वर्ष भी बजट पेश करेंगे तो वो भो 10 के क्लब में शामिल हो जायेंगे।

सोमवार, 4 फ़रवरी 2013

अगर पार्टी बनाने में और देर होती तो देश बिक जाता:अरविंद केजरीवाल

देश में 2014 के लिए मोदी और राहुल की बहस के बीच हमने अपने मित्र आनंद दत्त के साथ बात की एक्टिविस्ट से राजनीति में आये 'आप' के संयोजक अरविंद केजरीवाल से और उनसे पार्टी के कुछ कार्यक्रमों और देश की राजनीति के बारे में विस्तृत चर्चा की. प्रश्नावली बनाने में श्रीश चन्द्र जी के सहयोग के लिए हम उनके आभारी हैं। पेश है उनसे बातचीत...

सत्ता में आने के बाद जनता कैसे निर्णय लेगी?
                                                                               फोटो-आनंद दत्त
एक तो पार्टी से सम्बंधित निर्णय होगे और दूसरे  देश से सम्बंधित, जो पार्टी से संबंधित निर्णय होंगे वो कार्यकर्ताओं से पूछ कर लिए जायेगें जिसका स्ट्रक्चर अभी बन रहा है , ये नयी पार्टी है। जो भाजपा और  कांग्रेस ने पचास-सौ सालों में खड़ा किया वो हमारी पार्टी को छः महीने में खड़ा करना है। एक ढांचा बन रहा है, स्ट्रक्चर बनने के बाद सभी से पूछ कर निर्णय लेगें। FDI जैसे मुद्दे पर पहले कार्यकर्ताओ से पूछ कर निर्णय लिया लिया जायेगा  फिर इसको वेबसाइट आदि पर डाल कर लोगों से राय मांगी जाएगी। इसको लेकर हमने काम शुरु  कर दिया है। आने वाले दिनों में हमारी 100 विशेषज्ञों की  बैठक  होनी है। ढेर सारी समितियां बनायीं जा रही है, जिस से सम्बंधित ड्राफ्ट हमने अपनी वेबसाइट पर भी डाल दिया है जिसको डॉ. योगेन्द्र यादव जी देख रहे है। इसके साथ ही सेमिनार, सभाएं करेंगे और उसमे लोगो के विचारों के अनुसार निर्णय लेगें।

क्या सभी निर्णय जनता से पूछ कर लेगे?
महत्वपूर्ण निर्णय जनता से पूछ कर लेगें, रोज के निर्णय जनता से पूछ कर नही लिए जायेगें। कुछ निर्णय ऐसे होते हैं जो जनता को widespread (व्यापक रूप से) प्रभावित करते है जब की कुछ आंशिक रूप से प्रभावित करते हैं, ऐसे निर्णय जनता पर थोपे नहीं जा सकते। FDI जैसे मुद्दों पर हम वार्डो के आधार पर निर्णय लेंगे।इन वार्डों में जनता बैठ कर निर्णय लेगी। फिर वार्डो  के बहुमत के आधार पर सरकार फैसला लेगी।

विदेश नीति और रक्षा नीति पर भी जनता से पूछ कर निर्णय लिए जायेंगे?
नही, विदेश, रक्षा और वित्त जैसे मुद्दों पर जनता से पूछ कर निर्णय नहीं लिए जायेंगे। यहाँ पर केंद्र सरकार ही निर्णय लेगी।

आपकी पार्टी से चुन कर आये जन-प्रतिनिधि अगर लुटियंस दिल्ली के बड़े-बड़े सरकारी बंगलो में नही रहेंगे, तो फिर इनका (बंगलों) का क्या होगा?
इसके लिए भी जनता से सुझाव लिए जायेंगे लेकिन सच्चाई ये है कि एक तरफ तो 40 प्रतिशत जनता दिल्ली में झुग्गियों में रहती है, एक-एक झुग्गी में 10-10 लोग रह रहे हैं वहीँ दूसरी ओर इतने बड़े-बड़े बंगलों में 2-3 लोग रहते हैं। कुछ न कुछ तो गड़बड़ है। स्वीडन का प्रधान मंत्री बस में सफ़र करता है और भारत जैसे गरीब देश का प्रधान मंत्री 20-25 गाड़ियों के काफिले में सफ़र करता है। 3-4 बेड-रूम का फ्लैट पर्याप्त हैं संसद-विधायकों के लिए।

भारत में भ्रष्टाचार कभी प्रमुख मुद्दा नहीं रहा, भ्रष्टाचार एक मुद्दा तो हो सकता है पार्टी बनाने/चुनाव जीतने के लिए लेकिन एकमात्र मुद्दा नहीं।
देश में कोई एक पार्टी अगर भ्रष्टाचार को ख़त्म कर दे तो अन्य जो मुद्दे हैं उनका समाधान अपने आप हो जायेगा। (उत्तराखंड और उत्तरप्रदेश के चुनावों में...)
उत्तर प्रदेश में लोगों के पास विकल्प नहीं था और उतराखंड में खंडूरी की वापसी और लोकायुक्त के कारण ही भाजपा इतनी टक्कर दे पायी।

2013 में दिल्ली के अतिरिक्त पांच राज्यों में विधान सभा चुनाव होने है, आपकी पार्टी केवल दिल्ली में ही चुनाव लड़ेगी या अन्य राज्यों में भी चुनाव लड़ेगी? चूंकि आपको 2014 में लोक सभा चुनाव लड़ना है तो आपको कम से कम जितने राज्यों में हो सके उतने में तो अपनी पार्टी का परिचय दे देना चाहिए।
 इसका फैसला लेना अभी शेष है। उन राज्यों में हमारी पार्टी की कमेंटियां निर्णय लेगीं।

इंडिया टुडे-नीलसन सर्वे में लोग आपको नेता की तुलना में एक्टिविस्ट के रूप में ज्यादा देखना पसंद करते हैं, लोगों का मानना है कि पार्टी बनाने से आपकी विश्वसनीयता कुछ कम हुई है। क्या आपको लगता है कि पार्टी बनाने में कुछ जल्दबाजी कर दी?
तब तक भारत ही नही बचता। ये लोग देश को बेच देते। आयरन ओर खाली हो रहीं हैं, वैलाडील्हा की कोयले की खाने खाली हो गयी है, गोवा आयरन की खाने खाली हो गयी, छत्तीसगढ़ नदी बेच दी, हिमाचल प्रदेश में पहाड़ बेंच दिए। थोड़े दिनों में ये राष्ट्रपति भवन और संसद भी बेंच देगे। अब और देर नहीं कर सकते है, भारत दांव पर लगा हुआ है।

आपने अनशन से पहले रजत शर्मा को दिए गये एक इंटरव्यू में 2014 में व्यापक परिवर्तन (क्रांति ) की बात की थी। इस वक्तव्य से लगता है कि पार्टी बनाने का विकल्प आपके दिमाग में आ चुका था?
जनता में जो गुस्सा था और अभी भी है उसके हिसाब से हम लोगों का मानना था/है की 2014 का चुनाव कोई सामान्य चुनाव नहीं होने जा रहा है, इसलिए हमने ये कहा था, पार्टी बनाने का कोई  विचार नही था।

वर्तमान में राहुल बनाम मोदी की चर्चा है... (सवाल के पूरा होने से पहले ही बीच में टोकते हुए )
अंडर करेंट को कोई महसूस नही करता, ये मीडिया का पूर्वानुमान है। ये भाजपा और कांग्रेस की अंदरूनी  लड़ाई है। इस बार के चुनाव में देश की सारी  पार्टियाँ  एक तरफ होगी और दूसरी तरफ देश का आम आदमी होगा। लड़ाई जनता और कौरवों के बीच होगी।

गठबंधन की परिस्थितियों में किस पार्टी  के साथ जाना पसंद करेगे?
                                                                              फोटो-आनंद दत्त
गठबंधन में हम विश्वास नही करते। ये सब सत्ता पाने और सत्ता में बने रहने के तरीके है। हम सब इस बारे में नही सोचते. महंगाई के कारण  लोगो के घरो में चूल्हे नही जलते, उनके बच्चों को अच्छी शिक्षा नही मिल पाती। कांग्रेस और भाजपा इन सब के बारे में बात नहीं करती। हम इन्ही मुद्दों पर चुनाव लड़ेंगे। जोड़-तोड़ की राजनीति सत्ता में बने रहने का माध्यम है, हम ऐसा नहीं करेगे।

समर्थन लेने के मुद्दे पर किसका साथ लेना चाहेंगे? (गठबंधन के प्रश्न को दोबारा पूछने पर)
अभी हम इसके (गठबंधन समीकरण ) बारे में सोच नही रहे है। ये बहुत दूर की बात है।

आप एक बाद एक मुद्दे उठाते है उसका कोई समाधान नही हो पाता उससे पहले आप अन्य मुद्दा उठा देते हैं?
बताइए रॉबर्ट वाड्रा को जेल कैसे भेजा जाए। मुकेश अंबानी पर कार्रवाई कैसे/कौन करे? ये कांग्रेस का चलाया प्रोपेगेंडा है कि जब तक एक मुद्दे को न सुलझा लिया जाए तब तक दूसरा मुद्दा नही उठाना चाहिए। रॉबर्ट वाड्रा  के मुद्दे को कोर्ट में सुलझने में 25 साल लग जायेगे, तब तक कलमाड़ी को भ्रष्टाचार करने दिया जाये? कलमाड़ी के मुद्दे को न उठाया जाये? हम तो रोज इन चोरों का मुद्दा उठायेगें।

आप  खुद चुनावी कैरियर की शुरुआत कहाँ से करेगे, लोकसभा से या फिर विधानसभा से?
इसका भी फैसला नही किया गया है। आने वाले समय में पार्टी इस पर फैसला करेगी। ये सारी सत्ता की राजनीति है, कौन लडेगा, कौन नही लडेगा। ये सब सत्ता में आने के खेल है। हमारी पार्टी सत्ता क लिए चुनाव में नही उतर रही है. हम इस देश को बदलने आये है और इस देश की राजनीति बदलने आये है।

समय देने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद।