शुक्रवार, 7 अगस्त 2015

प्रधानमंत्री जी को पत्र: 'वृक्षारोपण' को जनांदोलन बनाइए


आदरणीय प्रधानमंत्री जी,
        पिछली "मन की बात" में आपने 15 अगस्त पर होने वाले संबोधन के लिए कुछ सुझाव मांगे थे, उसी संदर्भ में आपको ये पत्र लिख रहा हूँ.
मेरा हमेशा से ये पक्का विश्वास रहा है कि जनकल्याण के कुछ कार्य ऐसे होते हैं जिनकी सफलता सिर्फ सरकार या नौकरशाही के कार्यों से सुनिश्चित नहीं होती. बल्कि इनकी सफलता जन-भागीदारी से ही सुनिश्चित की जा सकती है. कहने का आशय है कि जब तक जनकल्याण के कुछ कार्यों को 'जनांदोलनो' में न बदला जाए तब तक उनकी सफलता दूर की कौड़ी लगती है.
इन्ही में से एक है जलवायु परिवर्तन से निपटने और पर्यावरण को स्वच्छ रखने की चुनौती. कोई जीव जब जन्म लेता है तो सबसे पहले जिस चीज की जरूरत होती है वह 'वायु' है. रोटी, कपड़ा और मकान... सबका नंबर आवश्यकतानुसार बाद में आता है. लेकिन कहना चाहिए कि "आधुनिक बनने की चाह" ने हम सभी ने इसमें (वायु में) ज़हर घोलने की शुरुआत कर दी थी जो अब तो सारी हदों को पार कर रही है. और हो भी क्यों न, आखिर हमने प्राणवायु देने वाले पेड़ों के लिए जगह ही कहाँ छोड़ी है! और अगर जगह है भी तो वृक्ष लगाने के लिए समय किसके पास है!
हम हर दो साल में अपने देश में वनों की स्थिति पर एक रिपोर्ट जारी करते हैं. इसमें दर्ज आंकड़े 21-22 फीसदी से आगे नहीं बढ़ पा रहे हैं. यह स्थिति तब है जब पहली वन नीति से ही हमने 33 फीसदी वनावरण का लक्ष्य तय कर रखा है. लक्ष्य न पाने के पीछे जो कारण रहे हों लेकिन इतना तय है कि ऐसे लक्ष्यों को पाने के लिए जनभागीदारी जरूरी ही नहीं बल्कि अपरिहार्य है.
आपने कुछ दिन पहले सफाई और बेटी बचाओ अभियानों की सफलता के लिए इन्हें जनआंदोलन बनाने का आह्वान किया, उससे मैं पूरी तरह सहमत हूँ. स्वच्छता को लेकर मैंने स्वयं पब्लिक प्लेसों पर गंदगी फैलाने वालों को अन्य के द्वारा टोकते हुए देखा और सुना है. और #SelfieWithDaughter का आईडिया भी खूब पसंद आया. इसी से प्रेरणा लेकर मुझे लगता है कि हमें हरियाली बढ़ाने के लिए ऐसा ही जनांदोलन चलाने की जरूरत है.
वर्तमान में जारी साल पर्यावरण के लिहाज़ से, दो तरह से महत्वपूर्ण है. एक तो, इस साल पर्यावरण सहित आठ लक्ष्यों वाले संयुक्त राष्ट्र के सहस्त्राब्दी विकास लक्ष्यों की समय सीमा समाप्त हो रही है. दूसरा, इस साल के अंत में दुनिया पेरिस में होने वाले पर्यावरण सम्मलेन को किसी बाध्यकारी समझौते की उम्मीद से देख रही है.
मैं चाहता हूँ कि आप स्वतंत्रता दिवस के आपने संबोधन में पूर्व राष्ट्रपति डॉ कलाम साहब को समर्पित करते हुए "वृक्षारोपण" को एक जनांदोलन बनाने का आह्वान करें. अगस्त-सितंबर-अक्टूबर का समय भी नयी पौध रोपने के लिए उपयुक्त होता है. डॉ कलाम युवाओं के खासे प्रिय रहें हैं और अगर स्कूल-कॉलेजों के छात्र-छात्राएं आगे आएं तो सफलता की उम्मीद बेमानी नहीं होगी. (सोशल मीडिया पर इसे भी #SelfieWithDaughter जैसा प्रमोट किया जा सकता है)
ये अभियान अगर आने वाले 4-5 सालों तक चल पाया तो वो दिन दूर नहीं जब हम अधिक जनसंख्या में होते हुए भी 33 फीसदी वन क्षेत्र का लक्ष्य हासिल कर सकेंगे. (अपने इस निवेदन में, मैंने बहुत आंकड़ो का उपयोग नहीं किया है क्योकिं मुझे लगता है कि तथ्यों की जानकारी आपको मुझसे ज्यादा ही होगी.)
आने वाले निकट भविष्य में अगर हम 33 फीसदी वनों का लक्ष्य हासिल कर पाए तो निश्चित ही न सिर्फ हम उन लाखों-करोड़ों गरीब और असहाय जीव-आत्माओं को स्वस्थ्य पर्यावरण उपलब्ध करा पाएंगे जिन बेचारों के पास बदलती हवा से निबटने के संसाधन नहीं है. बल्कि इसके साथ ही जलवायु परिवर्तन और स्वच्छ पर्यावरण के मसले पर एक बार फिर भारत, शांति और खुशहाली की राह पर दुनिया का नेतृत्वकर्ता होगा. जैसा स्वामी विवेकानंद ने कहा था-"भारत को सिर्फ महाशक्ति या आर्थिक शक्ति बनकर ही नहीं बल्कि शांति और मानवता का अग्रदूत बनकर विश्व-कल्याण के लिए दुनिया के अन्य देशों का नेतृत्व कर उनको राह दिखानी है."
वृक्षों से ही वन हैं, वन से ही जल, वायु और भोजन है,
और इन सबका सम्मलित रूप ही तो 'जीवन' है।
सधन्यवाद
भारत का एक आम नागरिक