सोमवार, 28 जनवरी 2013

"द स्प्रिट ऑफ इंडिया रिटन् ऑन स्टोंस"

                  गणतंत्र दिवस-"पूर्ण स्वराज" के सपने का सच होना

हमने गणतंत्र होने के अपने 63 साल पूरे कर लिये हैं। 26 जनबरी 1950 का हमारे इतिहास में अपना महत्वपूर्ण स्थान है। 31 दिसंबर 1929 को रावी के तट पर पूर्ण स्वराज के लिए जो शपथ ली गयी थी उसकी वास्तिविक परिणति इसी दिन पूरी हुयी थी, क्यों कि 15 अगस्त 1947 को भले ही सत्ता का हस्तांतरण हो गया था लेकिन उस समय भी भारत को डोमिनियन का दर्ज़ा ही हासिल हुआ था, गवर्नर जनरल भी था, कुछ हद तक ब्रिटिश साम्राज्य का सांकेतिक प्रभाव अभी भी था। वास्तव में 'पूर्ण स्वराज' 26 जनबरी 1950 को ही आया, इसी दिन हमें अपना संविधान मिला।
   इस दौरान भले ही कुछ निराशाएं आयीं हों लेकिन जो उपलब्धियां हमने हासिल की हैं उनसे इनकार नहीं किया जा सकता। स्वतंत्रता के लिए राष्ट्रीय आंदोलनों से हमें राजनीतिक आज़ादी तो मिल गयी थी लेकिन सामाजिक और आर्थिक स्वतंत्रता-समानता के लक्ष्य को पाने का स्वप्न हमें संविधान से ही मिलता है।

राष्ट्रपति महोदय के अनुसार "यह बदलाव आनायास नहीं आता, बल्कि यह तब आता है जब उसे (नागरिकों के) स्वप्न का स्पर्श मिलता है।" हमारी प्रगति शिक्षा के क्षेत्र में, स्वाथ्य के क्षेत्र में, कृषि में, आर्थिक विकास में स्पष्ट परिलक्षित होती है। इन सब से बढ़कर एक-दो सालों को अगर किनारे रख दिया जाए तो लोकतंत्र के जिस रास्ते पर हम चले थे उस पर निरापद चलना/अक्षुण रखना किसी उपलब्धि से कम नहीं है।

निश्चय ही इससे साथ-साथ अमीरी-गरीबी के बीच की खाई चौड़ी हुयी हो, शिक्षा में गुणात्मक सुधार न हुए हों और आर्थिक विकास भी समाज के सभी वर्गों तक न पहुंचा हो, लैंगिक समानता के लिए भी प्रयास जारी रहें  लेकिन जैसा कि पहले कहा गया कि यह समय रोने का नहीं है। हाँ, विकास के जिस रास्ते पर हम अग्रसर हैं उस पर थोड़ा ठहरकर विचार जरूर किया जाना चाहिए, जो कमियां रह गयीं हैं उन पर रचनात्मक विचार हो।

राष्ट्रपति महोदय ने संबोधन के अंतिम भाग में राष्ट्रपति भवन के एक स्तंभ के कुछ वाक्यों को उद्धृत करते हुए  भारतीय भावनाओं की बात की कि यह शिलाओं पर दर्ज है। (The Sprit of India written on stones)
इसके साथ-साथ ये भावना हमारे वेदों में दर्ज है, मेगास्थनीज़ की 'इंडिका' में, चाणक्य की 'अर्थशास्त्र' में दर्ज है। यह दर्ज है तक्षशिला और नालंदा के खंडहरों में। ये दर्ज है महवीर और बुद्ध के उपदेशों में। यह दर्ज है अशोक के स्तंभों में जिसमें उसने प्रजा को पुत्रों के सामन  मान कर आदेश जारी किए। भारत की यह भावना अकबर के दीन-ए-इलाही और सुलह-इ-कुल में भी है। इसी  भावना ने हमें 1857 में एकजुट होकर फिरंगियों के विरुद्ध लड़ने को प्रेरित किया। यह दर्ज है टैगोर के शांति-निकेतन में, यह दर्ज है शिकागो के सर्व-धर्म सम्मलेन में स्वामी जी के बचनो में। भारत की यही भावना लाहौर की जेल में झूलते फांसी के फंदों में भी है। भारत की इसी अनोखी भावना ने बापू के रूप में हमें नेतृत्वकर्ता दिया जिन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन को विश्व में सबसे अलग स्थान दिला दिया।

भारत की इसी भावना ने हमें दुनिया के बहतरीन संविधानों में से एक दिया, जिसके लिए हमें शुक्रगुज़ार होना चाहिए अपने संविधान निर्माताओं का जिन्होंने इतनी विविधता के बावजूद शासन के लिए ऐसा दस्तावेज़ दिया जो सभी को स्वीकार है और जिसने सबको एक रखने में उल्लेखनीय भूमिका निभाई।

दिल्ली में 16 दिसंबर की घटना के विरोध में लोग इसी राजपथ पर मोमबत्तियां और तख्तियां लेकर रायसीना हिल्स की तरफ कूच करते दिखाई देते थे, तब उनका गुस्सा था सरकार के खिलाफ वर्तमान व्यवस्था के खिलाफ लेकिन जब बात राष्ट्र के सम्मान और स्वाभिमान की हो तो यही लोग परेड में संस्कृति और शक्ति का प्रदर्शन देखकर अपना सीना चौड़ा किये गर्व के साथ उसी राजपथ पर दिखाई देते है। शायद इसी भावना को इकबाल की पक्तियां वयां करती हैं-कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी...



गुरुवार, 10 जनवरी 2013

सत्य या राष्ट्र : क्या महत्वपूर्ण है.?

 दोनों देशों(भारत/पाक) के आरोप-प्रत्यारोपों के बीच कक्षा में चर्चा
6 जनबरी को पाकिस्तान से लगती सीमा (LoC) पर गोलाबारी में एक पाक सैनिक की मौत हुयी और एक घायल हुआ। पाकिस्तानी सेना ने आरोप लगाया कि भारतीय सेना ने हाजी पीर सेक्टर में उसकी सीमा में घुस कर हमला कर एक सैनिक को मार डाला और एक अन्य को घायल कर दिया। लेकिन भारतीय सेना का कहना  कि पकिस्तान का ये आरोप उसी दिन तड़के हुयी गोलाबारी पर पर्दा डालने की कोशिश है जिसमें कोई हताहत नहीं हुआ था लेकिन सीमा से लगने वाले भारतीय गांव में कुछ नुक्सान हुआ था।

8 जनबरी को जम्मू कश्मीर के पुंछ इलाके में पाकिस्तानी सैनिकों ने भारतीय सीमा में अंदर आकर हमला किया इस हमले में दो सैनिक शहीद हुए, जिसमें एक सैनिक की सरविहीन शव मिला है।

इन दोनों दिनों की घटनाओं की जो भी जानकारी मिली है वो सेना के प्रवक्ताओं से ही मिली है। और दोनों ही देशों ने एक-दूसरे के आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया।
 इन घटनाओं को लेकर सीमा के दोनों तरफ के लोगों में पर्याप्त रोष देखा जा सकता है। भारत में खास कर हिंदी मीडिया और सोशल मीडिया में पकिस्तान को "सबक सिखाने" के भी सुझाव दिए जा रहे है। (पाक में भी ऐसा ही माहौल है)
अंग्रेजी दैनिक 'द हिंदू' ने इससे सम्बंधित एक रिपोर्ट अपने मुख्य पृष्ठ पर छापी है जिसमें बताया गया है कि सितम्बर माह में एक महिला द्वारा नियंत्रण रेखा पार किये जाने के बाद भारत ने सुरक्षा कड़ी करने के लिए चरौंदा गांव में बंकर बनाने शुरू कर दिए जो पकिस्तान के अनुसार 2003 में हुए समझौते का उल्लंघन है, और यही तनाव का कारण बने।
टाइम्स ऑफ़ इंडिया के अनुसार ये हमला पाक सेना के स्पेशल सर्विसेस ग्रुप (एसएसजी) द्वारा किया गया है, एसएसजी द्वारा ऐसा ही हमला 2000 में इलियास कश्मीरी के नेतृत्व में हुआ था।  दैनिक भास्कर भी कुछ इसी तरफ इशारा करता है।

आज सुबह हमारी कक्षा में इसी खबर को लेकर (आनंद) सर ने इसे एक तरह बिना घटना के कारणों की तह में जाए, पूर्वागृह से ग्रसित, भावना में बहकर भड़काने वाली रिपोर्टिंग करार दिया। और यही पूछा की एक पत्रकार या किसी भी के लिए राष्ट्र महत्वपूर्ण है या घटना की सच्चाई जानना.?
1-अमित- हम चाहे सत्य की बात करें या राष्ट्र की, दोनों ही मामलों में पाकिस्तान ही कटघरे में होगा।
              - बात जब भारत और सत्य को चुनने की हो तो मैं भारत को ही चुनूंगा क्योकि सत्य तो भारत के साथ अनिवार्य रूप से जुड़ा (एसोसिएट) है, भारत सत्य का पर्याय है।
2-वेद-राष्ट्रवाद को महत्वपूर्ण मानने का परिणाम अल्पकालिक के लिए तो बेहतर हो सकता है लेकिन दीर्घकाल के लिए सत्य ही बेहतर विकल्प है।
3-श्रीश-संदेह होने पर राष्ट्र को ही प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
4-आदर्श-नैतिकता के लिए या राष्ट्रहित के लिए सच छुपाया भी जा सकता है। जैसे बलात्कार के बाद पीड़िता का नाम न बताना या किसी जातीय या सांप्रदायिक हिंसा की रिपोर्टिंग में किसी का नाम नहीं लिया जाता।
5-विनम्रता-सत्य परिस्थिति के सापेक्ष है। यह देश-काल के अनुसार अलग-अलग हो सकता है।
6-दिनेश-सच भी कभी-कभी राष्ट्र हित में लाया जा सकता है।
7-अनुग्रह-मीडिया राष्ट्रवाद से प्रेरित है। जब एक भारतीय सैनिक पाकिस्तानी को मारता है तब खबर नहीं आती लेकिन जब कोई भारतीय मारा जाता है तब ज्यादा हो हल्ला होता है।
कक्षा में सभी दुविधा में थे लेकिन अधिकतर ने राष्ट्र को महत्वपूर्ण माना।

आनंद सर-वियतनाम युद्ध में अमेरिकी सरकार और मीडिया ने युद्ध की झूठी तस्वीर जनता को दिखाई परिणामतः अमेरिकी सैनिक युद्ध में उलझे रहे और इसमें अमेरिका को क्षति उठानी पड़ी।(यहाँ झूठ की कीमत स्वयं अमेरिका को चुकानी पड़ी)
               -इराक़ युद्ध में भी राष्ट्रहित के नाम पर अमेरिकी मीडिया ने युद्ध के पक्ष में जनमत बनाया और अपनी सरकार के कदम को सही ठहराया। (यहाँ झूठ की कीमत इराक़ी जनता ने चुकाई)

     इन सब तर्कों के बाद भी हमें इतिहास में भारत-पाक के कुछ युद्धों की ओर देखना चाहिए- स्वतंत्रता के बाद कश्मीर में आक्रमण, 1965, 1971 और कारगिल सभी लड़ाइयों को शुरू करने का श्रेय पकिस्तान को ही है। इसके अलावा चीन के साथ हुआ युद्ध भी चीन ने ही आरंभ किया था। इन घटनाओं के माध्यम इतना ही कहा जा सकता कि भले ही मीडिया पकिस्तान से हुए किसी भी आक्रमण को बाधा-चढ़ा कर दिखाए लेकिन अंततः भारत को दोषी नहीं ठहरता, और सत्य की भी पुष्टी हो जाती है।
     सामरिक मामलों के विशेषज्ञ मरूफ रजा के अनुसार 60 सालों से पाकिस्तानी सरकार और सेना में भारत के प्रति जो कटुता की भावना पैदा की है, उसे कुछेक क़दमों से कम नहीं किया जा सकता। कमोडोर उदयभास्कर इसके कारण पाक में आने वाले चुनावों में देखते हैं। जबकि बी. रमन के अनुसार दोनों देशों के बीच भले ही संबंध सुधरने के प्रयास चल्रा रहें हो लेकिन इसके समांतर ही भारत को अपनी सीमाओं को अभेद बनाकर पकिस्तान को ये एहसास कराना चाहिए कि ऐसी घटनाओं के गंभीर परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं।

अगर आपके भी सत्य और राष्ट्र की महत्ता से सम्बंधित कुछ तर्क हो तो स्वागत है...