गुरुवार, 29 नवंबर 2012

द गेम चेंजर- आपका पैसा आपके हाथ

ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश और वित्त मंत्री ने सब्सिडी को जब सीधे लाभार्थियों के बैंक अकाउंट में ट्रांसफर करते हुए इसे गेम चंजर की संज्ञा दी तो भले ही विरोधी इसे महज जुबानी जमा खर्च बताते हुए इसे कोरी लफ्फाजी करार दें लेकिन अगर थोडा गंभीरता से विचार करे तो इसमें निश्चित ही दम है। जयराम रमेश के मुताबिक राजीव गाँधी के एक रूपए में से सिर्फ 15 पैसे पहुँचने के कथन से सरकार ने प्रेरणा लेते हुए इसे शुरू किया है।

  कैश ट्रांसफर के लिए 42 योजनाओं की पहचान की गयी है जिसमे 29 के लिए 1 जनवरी से ट्रांसफर शुरू हो जाएगा। पहले यह योजना 51 जिलों से शुरू होगी। कैश ट्रांसफर के तहत पहली अप्रैल, 2014 से देश भर के करीब 10 करोड़ गरीब परिवारों को 32 हज़ार रुपये सालाना का भुगतान होगा. इस मद में सरकार सालाना तीन लाख बीस हजार करोड़ रुपये खर्च करेगी. जिन इलाकों में बैंक नहीं है वहां आंगनबाड़ी कार्यकत्र्ता, आशा बहनें और स्कूलों के अध्यापक बैंकों के प्रतिनिधि के रूप में काम करेंगे और लाभार्थियों तक पैसा पहुंचाएंगे जिसके बीच में ही हजम कर लिए जाने की पूरी संभावना है। लेकिन इसमें एक पेंच यह भी है और योजना की सबसे बड़ी खामी ये है कि देश की 120 करोड़ से ज़्यादा की आबादी में महज 21 करोड़ लोगों का आधार कार्ड बना हुआ है और आधार कार्ड के आधार पर ही बैंक में अकाउंट खोलना है तो ऐसे में यह योजना हर किसी तक कैसे पहुंचेगी. यह सवाल खड़ा होता है।
  
   कैश ट्रांसफर योजना के आलोचक इसे कांग्रेस के लिए वोट का एटीएम मान रहे है। आलोचकों का कहना है की जब बृद्धावस्था पेंशन की राशि समय पर नहीं पहुँच पाती तो फिर इस योजना में कैसे उम्मीद की जा सकती है। आलोचकों में अरुणाराय और मेधा पाटकर जैसे लोग शामिल है। वैसे अगर देखा जाए तो वर्तमान में चल रही प्रणाली से कैश ट्रांसफर योजना से संसाधनों का जो लीकेज होता है वह रुकेगा, मिटटी के तेल जैसे अनावश्यक चीजों का उपयोग कम होगा। वर्तमान वित्त सलाहकार रघुराम राजन ने ऐसा करने की सलाह 2009 में दी थी और अन्य विशेषज्ञ भी इसी रास्ते को सही ठहराते रहे है।

   लेकिन अगर सरकार की स्थिति और समय के आईने में देखा जाए तो कांग्रेस ने ये कदम 2014 को लक्ष्य रखते हुए उठाये हैं। एक पूर्व कैविनेट सचिव ने कांग्रेस का विश्लेषण करते हुए इसे चुनाव जीतने की मशीन बताया है जिसके पास न तो कोई विचारधारा है और न ही राष्ट्र को कोई कार्यक्रम।
1971 में कांग्रेस ‘गरीबी हटाओ’ और 2004 में ‘कांग्रेस का हाथ, आम आदमी के साथ’ नारे देकर सत्ता में आई थी, 2009 में नरेगा और कर्ज माफ़ी ने सत्ता दिलवाई तो इस बार इसने गरीब मतदाताओं को लुभाने के लिए ‘आपका पैसा आपके हाथ’ योजना शुरू की है। राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के चुनाव के मुद्दे पर सोनिया ने विपक्ष को किस प्रकार किनारे लगाया इसे इसी परिप्रेक्ष्य में देखने की कोशिश करनी चाहिए। इससे पहले भी संप्रग-2 खाद्य सुरक्षा कानून से अपनी कुर्सी के एक अन्य पाए को साधने की कोशिश कर रही है। इन सब के बीच हर हाथ में फोन की घंटी भी सुनाई दे रही है। फिर राहुल को हर हाल में गद्दी पर बैठना भी है अगर इस बार चूके तो 2019 तक इंतज़ार करना होगा। ऐसे में अरविंद या अन्ना जन लोकपाल-जन लोकपाल कहे, भाजपा CWG, 2G, कोलगेट या जीजाजी- जीजाजी (राबर्ट मामला) चिल्लाएं तो कौन सुनने वाला है!!
अब फिर वित्त मंत्री के के उस शब्द को याद कीजिये- "गेम चेंजर"

1 टिप्पणी:

  1. आपके अद्भुत लेखन को नमन,बहुत सराहनीय प्रस्तुति.बहुत सुंदर
    बहुत सुंदर भावनायें और शब्द भी ...बेह्तरीन अभिव्यक्ति !शुभकामनायें.
    आपका ब्लॉग देखा मैने और कुछ अपने विचारो से हमें भी अवगत करवाते रहिये.

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