बुधवार, 17 अक्तूबर 2012

तुम मेरी पीठ सहलाओ, मैं तुम्हारी सहलाता हूँ...

तुम मेरी पोल न खोलना, मैं तुम्हारी नहीं खोलूँगा..!!!


स्कूली शिक्षा का दौर हो या विश्वविद्यालयी शिक्षा, जाने-अनजाने में वहां के अध्यापकों को ये एहसास हो ही जाता की लड़कों/लड़कियों से एक दूसरे की कमियाँ जानना, उनके बीच क्या गपशप चल रही है, उनकी पोल लेना बहुत मुश्किल है। इसी अनुभव के आधार पर हमारे संस्थान के आनंद सर अक्सर ये जुमला इस्तेमाल करते है, कि कही ऐसा तो नहीं कि आप (छात्र) लोग मिलकर एक-दुसरे की पीठ खुजलाते की परम्परा पर चल रहे हो।

    ये तो हुयी छत्रो की बात अब अगर आप वर्तमान भारतीय राजनीति के घटनाक्रम पर नज़र डाले तो ऐसा ही कुछ यहाँ भी देखने को मिलेगा। बात शुरू होती है महाराष्ट्र के उप मुख्यमंत्री अजीत पवार के इस्तीफे के साथ।  महाराष्ट्र में सिचाईं के लिए बनने वाले बांधों पर जनहित याचिका दायर करने वाली सामाजिक कार्यकर्ता अंजलि दमानिया ने भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी से मिलकर इस मुद्दे को उठाने की बात की लेकिन उनके अनुसार गडकरी के जबाब से वो चकित रह गयीं। नितिन गडकरी ने कहा- " आप ये कैसे मान सकती है कि ये मुद्दे हम उठायेंगे, चार काम वो (शरद पवार) हमारे करते हैं-चार काम हम उनके करते हैं....."
दूसरा वाकया तब हुआ जब अरविंद केजरीवाल और प्रशांत भूषण ने सोनिया गाँधी के दामाद राबर्ट वाड्रा पर डी एल ऍफ़ के साथ सांठ-गांठ का आरोप लगाया। इसके तुरंत बाद हिमांचल के मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल ने भी प्रियंका पर जमीन के लेन-देन से जुड़े मुद्दे पर धोखाधड़ी का आरोप लगाया। लेकिन देखने वाली बात ये है कि जमीन की खरीद-फरोख्त्त राज्य के अधिकार में ही आता है ऐसे में धूमल को आरोप लगाने से पहले जांच के आदेश क्यों नहीं दिए.?
तीसरा, राबर्ट वाड्रा पर भाजपा का कहना है की उसने ये मामला 2011 में ही संसद में उठाया था। लेकिन सवाल उठता है की तब से क्या हो रहा था..? जब भाजपा ने अरविंद की आवाज़ में हाँ में हाँ मिलाने की कोशिश की तो दिग्विजय सिंह कहते है राजनैतिक पार्टिओं में ये आपसी सहमती (Mutual Understanding) होती है और होनी भी चाहिए कि वो एक-दूसरे के परिवार के सदस्यों के ऊपर कोई दोषारोपण नहीं करेंगी।
बकौल दिग्विजय, अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल में उनके दामाद रंजन भट्टाचार्य और आडवाणी के बेटे-बेटी के खिलाफ पर्याप्त सबूत थे लेकिन कांग्रेस ने उनके खिलाफ एक भी शब्द नहीं बोला। अब सवाल उठता है क्या इसी परम्परा का पालन भाजपा और अरविन्द को करना चाहिए..?
चौथा, सलमान खुर्शीद के ट्रस्ट में हुयीं गड़बड़ियो का आरोप उत्तर प्रदेश सरकार की तरफ से आये हुए है और जिस जांच की मांग की जा रही है उसकी पूरी जिम्मेदारी समाजवादी पार्टी की सरकार पर आती है। प्रश्न फिर वही की क्या अखिलेश जांच के आदेश देंगे? अगर देंगे तो कितनी निष्पक्ष होगी इस पर भी संदेह है क्यों कि उनके पिता और सपा मुखिया मुलायम के विरुद्ध आय से अधिक संपत्ति के मामले में सी बी आई ने जो याचिका दायर कर राखी है उसमे सरकारी वकील कि नियुक्ति पर पूरा नियंत्रण क़ानून मंत्री सलमान खुर्शीद का है ऐसे में एक दुसरे को लाभान्वित करने की बात फिर सामने आती है।
तो हुयी न राजनीति में भी एक दूसरे की पीठ सहलाने की बात, किसी की पोल न खोलने की बात.....

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें