सोमवार, 24 सितंबर 2012

अभिव्यक्ति के नाम पर...

असम हिंसा के बाद देश के बिभिन्न हिस्सों में जिस तरह पूर्वोत्तर के लोगो को लेकर एक अफवाह फैली और जिसकी परिणति यहाँ के लोगो का देश के विभिन्न हिस्सों से पलायन हुआ और कई जगहों पर हिंसा भी भड़की तो सरकार ने इन अफवाहों की जांच के लिए एक कमेटी गठित की जिसने अपनी रिपोर्ट में बताया इन अफवाहों को फ़ैलाने में सोशल मीडिया और थोक मोबाइल संदेशो की प्रमुख भूमिका रही है। फोरेंसिक रिपोर्ट के अनुसार 13 जुलाई से ही बिभिन्न वेब साइटों पर हिंसा के लिए  भड़काने बाली तस्वीरें, बीडियो या अन्य प्रकार की सामग्री मौजूद थी। साथ ही यह तथ्य भी सामने आया की इनमे से बहुत से कारकों का संचालन पडोसी देश पकिस्तान से हो रहा था।
देश के अन्य हिस्सों में  इस तरह की हिंसा की घटनाओं को रोकने के लिए  सरकार ने 300 से अधिक वेब साइटों पर प्रतिबन्ध लगाया जो सरकार के अनुसार इन पर भड़काऊ सामग्री थी जिसमे से कुछ पकिस्तान से भी संचालित हो रहे थी। लेकिन मीडिया में आ रही ख़बरों के अनुसार प्रतिबंधित की गयी वेब साईटों में बहुत सी स्वतंत्र पत्रकारों, गैर सरकारी संगठनो की है जिनकी देश भक्ति पर किसी भी प्रकार की शंका नहीं की जा सकती और सरकार इसी बहाने अपनी आलोचना को दबा रही है। आगे बड़ते हुए सरकार ने सोशल मिडिया पर निगरानी की आवश्यकता पर बल दिया। इत्तेफाक से इसी समय  युवा कर्टूनिस्ट असीम त्रिवेदी ने भारत माता और राष्ट्रीय चिन्हो के कुछ कार्टून बना दिये, जिसको अपराध की श्रैणी में रखते हुये असीम को देशद्रोह के अंर्तगत गिरिफ्तार किया गया। सोशल मीडिया पर निगरानी पर पहले से ही आलोचनाओं से घिरी सरकार पर असीम प्रकरण ने एक बार फिर विरोधियों को एक हथियार उपलब्ध करा दिया। दूसरा इत्तेफाक तब हुआ जब अमेरिका में बनी एक फिल्म "इन्नोसेंस ऑफ मुस्लिम्स" को लेकर एक सिमित वर्ग इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता माना तो मुस्लिम देशों में इससे उपजे विरोध ने 45 से ज्यादा लोगों की जान ले ली है। इससे पहले तीसरा इत्तेफाक हो मैं आपको इतिहास में अभिव्यक्ति को लेकर घटी कुछ घटनाओं की याद दिलाना चाहता हूँ। इसी स्वतंत्रता के नाम पर जमा मस्जिद के शाही इमाम बुखारी 'प्रत्यक्ष कार्यवाही दिवस' दोहराने की धमकी देते है, उत्तर प्रदेश सरकार के मंत्री आज़म खान भारत माता को डायन कहते है, चित्त्रकार एम एफ हुसैन हिन्दू देवी-देवताओं की अश्लील चित्र बनाते है, अरुधंति राय कश्मीर लेकर भारत को चुनौती देती है, जसवंत सिंह विभाजन के लिए नेहरु को दोषी मानते है, मायावती गाँधी के कार्यों को नौटंकी बताती है। लेकिन फिर इत्तेफाक देखिये हुसैन के पक्ष में अभिव्यक्ति का झंडा बुलंद करने बाले न तो अमेरिका में बनी फिल्म पर कुछ बोलते है, न बुखारी के वयान पर कुछ बोलते है, और न ही आज़म के वयान पर.... है न इत्तेफाक...!!!

भारत में प्रतिबंधित होने से पहले मैंने इन्नोसेंस ऑफ मुस्लिम्स का 120 सेकंड का वीडियो देखा। इसकी अश्लीलता देख कर मैं इस बात से पूर्णतया सहमत हूँ कि किसी को ऐसी स्वतंत्र नहीं दी जा सकती जो किसी की धार्मिक भावनाओं के प्रति इतना असंवेदनशील हो। भारत सरकार ने उसे प्रतिबंधित किया वो सही है।

न सिर्फ भारत के संविधान में बल्कि मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा में भी अभिव्यक्ति की स्वतंत्र को राज्य और समाज के हित में कुछ निर्बन्धन लगाए गए है,या ऐसा करने की छूट भी दी गयी है। अगर हम आम बोलचाल की भाषा में कहे तो ये निर्बन्धन भी उसी कथन को सही साबित करते है जिसमे दूसरों की नाक शुरू होने से पहले अपनी स्वतंत्रता को सीमित करने की बात कही जाती है। लेकिन ऊपर जो घटनाएं बताईं गयी है उसके हिसाब से मुझे लगता है कि अलग-अलग मामलो में ये नाक छोटी-बड़ी होती रहती है।
आखिर क्यों हम इस स्वतंत्रता को लेकर दोहरे मानदंड अपनाते है? एम एफ हुसैन ने जो भी आपत्ति जनक बनाया हो उसका विरोध हो, इन्नोसेंस ऑफ मुस्लिम्स की भी आलोचना हो। अभिव्यक्ति के नाम पर हम ऐसी कुछ ऐसा न करें जो देश की संप्रभुता या अखंडता को चुनौती दे, धर्म विशेष के लोगों को आहत करे। इसके बाद अगर ऐसा कोई करता है तो विना जाति या धर्म देखे उसकी आलोचना होनी चाहिए। हम विविधता से भरे देश में रहते है, ऐसी स्वतंत्रतायें भले ही हमे न तोड़ पायें लेकिन फिर भी हमारे बीच खटास तो पैदा कर ही सकती है।
अब प्रश्न आप से- भारत में रहते हुए आप असीमित स्वतंत्रता के पक्ष में है या भारत की अखंठता के.... फैसला आपका...

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