बुधवार, 22 अगस्त 2012

असफल कौन हुआः अण्णा या जनता ?

सरकार द्वारा 9 दिनों के अनशन के बाद कोई ध्यान ना दिए जाने पर अन्ना और उनकी टीम ने राजनैतिक विकल्प देने कि बात क्या कि यहाँ तो "खास से लेकर आम" सभी ने उन पर राजनीति करने का आरोप लगा कर उनको असफल करार दे दिया. सरकार पक्ष ने इसे अपने आरोपों का पुष्टिकरण बताया तो विपक्ष ने दबे एवं हल्के स्वर से इसे लोकतंत्र में एक और विकल्प करार दिया. किसी भी पार्टी से ना जुड़े आन्दोलन के आलोचकों ने इसे अन्ना कि नेतृत्व कि कमजोरी करार दिया लेकिन जैसा कि ऊपर कहा गया है सभी ने अन्ना पर राजनीति करने का आरोप लगाया और इसको असफल करार देते हुए, टीम सहित अन्ना को दोषी ठहराया.
 पहले मै बात करूँगा कि "अन्ना अब राजनीति कर रहे है". प्रख्यात राजनितिक विश्लेषक डॉ. योगेन्द्र यादव के अनुसार-अपने किसी भी अधिकार के लिए आवाज मुखर करना राजनीति ही है". फिर ये एक घर में भाई-बहन के झगड़े में लड़कियों द्वारा अपने अधिकारों कि बात हो, समाज में व्याप्त किसी पुरापंथी प्रथा के विरुद्ध आवाज हो या चुनावों में प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से भाग लेने कि बात हो, इन सभी जगहों पर राजनीति ही होती है. लेकिन हम जिस समाज में रहते है उसमे चुनाव लड़ने को ही राजनीति करना माना जाता है और राजनीति को एक बुरा खेल कहा जाता है. डॉ.शिव खेड़ा के अनुसार कोई भी खेल बुरा या गन्दा नहीं होता, गंदे तो इसके खिलाडी होते है. अब मैं अपने पाठको से ही पूछना चाहता हूँ कि क्या अन्ना ने अभी से राजनीति करना शुरू किया है या किसी भी आन्दोलन को गैर राजनैतिक कहा जा सकता है? क्या वे ऐसा करके कुछ बुरा कर रहे है? 
दूसरी बात कि "अन्ना असफल हुए". ना सिर्फ भारत में बल्कि हर एक वास्तिविक लोकतान्त्रिक देश में लोगो के पास अपनी बात मनवाने के लिए अनशन के साथ-साथ चुनावों में भाग लेकर अपनी मांगो को मनवाने का मौलिक अधिकार रहता है. ऐसे में अगर किसी का एक विकल्प यदि कारगर ना हो तो दूसरे विकल्प भी तो सबके पास रहता ही है, गूंगी-बहरी-अंधी, अपनी ही बात से पलटने बाली सरकार, गाँधी जी के बन्दरों का जब दूसरा ही अर्थ लगाये तो राजनीतिक विकल्प देने में क्या बुराई है? हम भारतीयों में 99% को रंग दे बसंती फिल्म अच्छी लगती है, सब चाहते है कि यहाँ भ्रष्टाचारी व्यबस्था का परिवर्तन होना चहिये, इसके लिए क्रांति कि जरूरत है. गाँधी जी, भगत सिंह पड़ोस में हो, क्रांति के लिए हनुमान जी आ जाए मुझे कुछ ना करना पड़े क्योकि मैं अपने तरीके से भ्रष्टाचार मिटाऊंगा, ये तरीका क्या होगा मुझे खुद पता नहीं है, फिर जब मौका मिलता भी है तो मैं अकेला क्या कर सकता हूँ? एक बार घंटे-दो घंटे भर के लिए जंतर मंतर या रामलीला मैदान जाने भर से आम जनता के कर्तव्य पूरे हो जाते है? कुछ लोगों का कहना है कि सिर्फ एक लोकपाल बन जाने से ही भ्रष्टाचार तोड़े ही मिट जायेगा इसके लिए हम सभी को जागरूक होना पड़ेगा. निश्चित ही ये सही है लेकिन मैं ये नहीं समझ पा रहा हूँ कि लोकपाल बनने से दूसरे विकल्प यानि कि कि आत्मनियंत्रण या आत्मानुशासन पर क्या फर्क पड़ेगा. ये अपनी जगह महत्वपूर्ण है लेकिन समाज कितना भी आदर्शवादी क्यों ना हो क़ानून कि जरूरत हमेशा रहती है.
सपनो का भारत घर बैठ कर दूसरो कि कमियाँ निकालने से, FaceBook -Twitter पर नहीं बनता. अंतिम विजय तक साथ रहना पड़ता है. मैं मानता हूँ कि अन्ना और उनकी टीम से कुछ गलतियां हुयीं होंगी, आपकी भी खुछ शिकायतें होंगी, अगर कमियां निकालने कि ही बात हो तो मुझे नहीं लगता कि दुनिया मे ऐसा कोई निरा ही होगा जो आपके आदर्श के खांचे में हूँ-व-हूँ आ जाये. गलती अन्ना कि नहीं उस जनता कि है जो एक बार में वन्देमातरम या इन्कलाब कहने में थक जाती है.

3 टिप्‍पणियां:

  1. किसी भी शब्द के कम से कम दो तरह के अर्थ होते हैं . पहला जो उस शब्द की व्युत्पत्ति से निकलता है , दूसरा जिसे सामा
    न्य जन मानस ने धारित कर लिया हो . "राजनीति" शब्द का अर्थ व्युत्पत्ति के अनुसार " राज्य या शासन से सम्बंधित नीति " होता है , इसलिए इसका वास्तविक अर्थ वर्तमान भारत में तो केवल संविधान को ही प्रकट करता है, किन्तु यदि और व्यापक रूप इसको दें तो यह शासन की गृह, विदेश, अर्थ , न्याय इत्यादि व्यवस्थाओं को सम्मिलित करेगा . और अधिक व्यापकता देने पर यह सत्ता प्राप्ति के लिए प्रयोग की जाने वाले षडयंत्रों , कूटनीतियों को भी सम्मिलित कर लेगा . इस दृष्टि से चुनाव भी राजनीति का ही हिस्सा हैं . किन्तु घर में , परिवार में ,किसी बात को इस शब्द से जोड़ना उचित नहीं होता क्योंकि यह शब्द वृहत समाज की शासन प्रणालियों से सम्बंधित है , न की पारिवारिक या व्यक्तिगत ईकाई से . राज से सम्बंधित है न की परिवार , मोहल्ला, पडोश या व्यक्ति से .
    फिर भी "राजनीति" शब्द के व्यापक अर्थों में "कूटनीति" या "षड़यंत्र" या "न्याय " या "अधिकार" या "व्यवस्था" के तत्त्व सम्मिलित हैं और ये तत्व परिवार या पडोश, घर, गाँव में भी मानव स्वाभाव वश प्रकट होते रहते हैं , इसलिए जन मानस इन सब जगह " राजनीति" शब्द का प्रयोग करने लगा और जन समान्य द्वारा इस शब्द के अर्थ की स्वीकृत व्यापकता में ये सभी क्षेत्र आ गए . इस तरह से हम चाहें तो अपने मन और मस्तिष्क के बीच होते द्वंद्व को भी राजनीति कह सकते हैं . किन्तु किसी भी शब्द को इतनी अधिक व्यापकता देना , उस शब्द के महत्त्व को उसी तरह मटियामेट कर देता है जिस तरह "प्रेम" "प्यार" जैसे शब्दों के वास्तविक अर्थ को किया जा चूका है . आज कोई भी इस बात को १००% गारंटी से नहीं बता सकता की सामने वाला किसी को "लव यू " कह रहा है तो उसके अन्दर वास्तव में किस तरह के रिश्ते की बात है , . एक पिता अपने पुत्र, पुत्री, माँ, पिता, प्रेमिका, पत्नी , दोस्त ....सभी को "लव यू " बोल देता है आज. यदि केवल उसके ये शब्द ही सामने हों, सन्दर्भ सामने न हो तो यह नहीं बताया जा सकता की उसने ये शब्द किस रिश्ते के लिए बोले .

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  2. यह कहना गलत होगा की कोई खेल गन्दा या बुरा नहीं होता . यदि खेल का उद्देश्य गन्दा है तो वह खेल भी गन्दा है , हाँ यह सही है की गन्दा खेल गंदे लोग ही चुनते हैं खेलने के लिए और अच्छा खेल अछे लोग चुनते हैं

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  3. किसी भी व्यक्ति, समुदाय, संस्था , संघ, इत्यादि की असफलता एक ही बात से सिद्ध हो सकती है कि उसने अपने लक्ष्य को पाने के लिए कोई भी प्रयास न करने का निश्चय कर लिया हो. यदि उसने केवल रास्ता बदला है, ,साधन बदला है, या किसी अंतराल के लिए प्रयास को स्थगित कर दिया है, तो उसे असफल नहीं कहा जा सकता

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