ले. कर्नल (सेवानिवृत) यशवंत सिंह राठौर की जीत समाज में अच्छाई बची होने का प्रमाण है
कर्नल साहब अब एक नई पारी खेलने के लिए मैदान में उतरे. उन्होेने उत्तर प्रदेश के जालौन जिले में अपने छोटे से गाँव सींगपुरा, जिसमें लगभग 1200 मतदाता हैं, से ग्राम पंचायत का चुनाव लड़ा और जीत गए.
उत्तरप्रदेश के जालौन, जहाँ मैं रहता हूँ, वहां से ये गाँव करीब 6-7 किलोमीटर की दूरी पर है. जब मैं दि्ल्ली से कुछ दिनों के लिए घर गया तो उस समय प्रदेश में पंचायत चुनाव जोरों पर थे ऐसे में उत्सुकता स्वाभाविक थी लेकिन कर्नल साहब के चुनाव ने इस उत्सुकता को कुछ ज्यादा ही बढ़ा दिया. दरअसल ऐसा इसलिए था
प्रधानी के लिए 'घोषणा-पत्र' जिसमें उन्होंने (प्रतिष्ठित)पद का उल्लेख नहीं किया |
जीवन के 7वें दशक में चल रहे यशवंत सिंह जी ने जिस स्कूल की शुरुआत की थी वह अब 12वीं तक हो गया है. इसका नाम उन्होंने अपने पुत्र लेफ्टीनेंट विक्रम सिंह के नाम पर रखा है, जो शहीद हो चुके हैं. इस स्कूल को वे 'अच्छी शिक्षा की कमी' को दूर करने का एक प्रयत्न बताते हैं.
जब मैं उनसे मिलने गया तो वे विरोधियों द्वारा अपने लगभग 15 नाम मतदाता सूची से कटवाए जाने को लेकर थोड़े परेशान थे और ऐसा होना स्वाभाविक भी है. कर्नल साहब के अनुसार 2014 के लोकसभा चुनावों में ये (15) लोग, जो उनके समर्थक हैं, गांव में मतदाता के रूप में पंजीकृत थे लेकिन उसके बाद इन सभी के नाम जानबूझकर सूची से काट दिए गए. लेकिन परेशानी के बावज़ूद उन्हें ईश्वर पर और अपनी जीत पर पूरा भरोसा था.
जब मैंने उनसे चुनाव के बारे में बात की तो बताने लगे कि "गांव में जो कार्य होते हैं उनमें चरम भ्रष्टाचार है और जो होने चाहिए वे होते नहीं. इससे गांव की जो दशा (दुर्दशा) है, देख कर दुःख होता है. लोगों ने पहले भी मुझसे चुनाव लड़ने के लिए कहा लेकिन कुछ कारणों मैं नहीं ल़ड़ा लेकिन अब तो भष्टाचार की हद ही हो गई, मैं स्थिति देखकर घबरा गया, जो पैसा विकास के लिए आता है, उस बारे में ये लोग गांव वालों को कुछ नहीं बताते, कितना पैसा आया, कहां से आया, कहां गया, कुछ पता नहीं... इसीलिए अब लड़ रहा हूँ" साथ में कहते हैं कि अगर वो निर्वाचित हुए तो कोई खुले में शौच के लिए नहीं जाएगा, गांव में पर्यावरण संरक्षण के लिए काम करूंगा, हर साल स्वयं (निजी) के पैसों में से एक लाख रूपए जनकल्याण के लिए खर्च करूंगा. अन्य वादों को उनके घोषणा-पत्र में देखा जा सकता है.
गांव वाले भी उनकी खुले दिल से तारीफ करते हैं. लेकिन ऐसा भी नहीं है कि गांव में उनके आलोचक न हों. आलोचकों को जो बात सबसे ख़राब लगती है वो है कर्नल साहब का गाँव वालों से कटकर एकांत (isolation) में रहना. शायद इसी एकमात्र कारण से इस ग्राम-पंचायत के लिए 13 उम्मीदवार खड़े हैं.
मैं इस ब्लॉग को 24 नवंबर, जिस दिन उनसे मिला था, को ही लिखना चाहता था लेकिन फिर पत्रकारिता के कुछ मूल्यों के कारण ऐसा करने से रुक गया. आज जब परिणामों की घोषणा हुई और उनकी जीत का पता चला तो रुकने का कोई कारण नहीं रह गया. फोन पर बात करते हुए मैं उनके शब्दों को पूरी तरह न सही लेकिन बहुत हद तक तो समझ ही सकता हूँ.
यशवंत सिंह जी की जीत समाज में अच्छाई बचे होने का एक प्रमाण है. जब मेरी उनसे मुलाक़ात हुई थी तो विदा लेते वक़्त उन्होंने मुझसे खुद उनके कार्यों के ऊपर नज़र ऱखने के लिए कहा था. "अमित, अगर मैं ही भ्रष्ट हो जांऊ तो आप मेरे ही खिलाफ लिखना..."
अब, जब वो जीत गए, उनके शब्द हमेशा मुझे आकर्षित करेंगे... मैं फिर 8-10 महीनों में उनके गांव जाऊंगा और उन वादों की हक़ीकत जानने की कोशिश करूंगा जो उन्होने किए हैं.
connel sahab se samvad sunkar bhav bhivor ho gya.dhany hai mati ke saput
जवाब देंहटाएंसराहनीय...
जवाब देंहटाएंकुछ लोगो के लिए देश सेवा ही सब कुछ होती है,
कर्नल साहब उसी का उदाहरण है.
आपको सलाम...
बहुत सुंदर प्रस्तुति...... ऐसे लोग विरले ही मिलते हैं
जवाब देंहटाएंMy first teacher.. I am proud resident of that village ..
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